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________________ १२६ भगवतीसूत्रे रत्नप्रभायाम् , एकः शर्करामभायाम् , एकः पङ्कप्रभायाम् भवति २, अथवा त्रयो रत्नप्रभायाम् , एकः शर्क राप्रभायाम् , एको धूममभायां भवति ३, अथवा त्रयो रत्नप्रभायाम , एकः शर्करामभायाम् , एकस्तमायां भवति ४, अथवा त्रयो रत्नप्रभायाम् , एकः शर्करामभायाम् , एकोऽधःसप्तम्यां भवति ५, इति षष्ठ विकल्पेऽपि पञ्चभङ्गाः अथ रत्नप्रभा-वालुकाप्रभा संयोगे भङ्गानाह-' अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे बालुयप्पभाए, तिन्नि पंकप्पभाए होज्जा' अथवा एको नैरयिको रत्नप्रभायाम् एको वालुकाप्रभायां, त्रयः पङ्कप्रभायां भवन्ति, ‘एवं एएणं नारक शर्क राप्रभा में और एक नारक अधः सप्तमी में उत्पन्न हो जाता है" यह अन्तिम भंग छठे विकल्प का है-इसके पहिले के तीन विकल्प इस प्रकार से हैं-अथवा तीन नारक रत्नप्रभा में, एक नारक शर्कराप्रभा में और एक नारक पंकप्रभा में उत्पन्न हो जाता है , अथवा-तीन नारक रत्नप्रभा में एक नारक शर्कराप्रभा में और एक नारक धूमप्रभा में उत्पन्न हो जाता है ३ अथवा तीन नारक रत्नप्रभा में, एक नारक शर्कराप्रभा में और एक नारक तमःप्रभा में उत्पन्न हो जाता है । इसमें का अन्तिम विकल्प ( एवं जाव अहवा तिनि रयणप्पभाए एगे सकरप्पभाए एगे अहे सत्तमाए ) इस सूत्र पाठ द्वारा कहा ही जा चुका है। अब रत्नप्रभा और वालुकाप्रभा में जो भंग बनते हैं-उन्हें सूत्रकार कहते हैं -(अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, तिन्नि पंकप्पभाए होजा) अथवा एक नैरथिक रत्नप्रभा में, एक नैरयिक वालुकाप्रभा में और तीन नैरयिक पंकप्रभा में उत्पन्न हो जाते हैं १, अथवा-एक नैरयिक सकरप्पभाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा" (२) 424। ३ ना२४ २त्नमामा એક નારક શર્કરામભામાં અને એક નારક પંકપ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે. (૩) અથવા ત્રણ નારક રત્નપ્રભામાં, એક નારક શર્કરામભામાં અને એક નારક ધૂમપ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે. (૪) અથવા ત્રણ નારક રત્નપ્રભામાં, એક નારક શર્કરા પ્રભામાં અને એક નારક તમ પ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે (૫) અથવા ત્રણ નારક રત્નપ્રભામાં, એક નારક શરાપ્રભામાં અને એક નારક નીચે સાતમી નરકમાં ઉત્પન્ન થાય છે. હવે રત્નપ્રભા અને વાલુકા પ્રજા સાથે પછીની પૃથ્વીના વેગથી જે मा। अने छ, ते सूत्रा२ ५४८ रे छ- “अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे पालुयभाए, तिन्नि पकप्पभाए होज्जा" (1) Aथ मे ना२४ २त्न. પ્રભામાં, એક નારક વાલુકાપ્રભામાં અને ત્રણ નારક પંકપ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય श्री. भगवती सूत्र : ८
SR No.006322
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 08 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages685
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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