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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी० श०९ उ० ३२ सू० ४ भवान्तरप्रवेशनकनिरूपणम् १२५ यां, द्वौ शर्करामभायाम् , एकः पङ्कप्रभायां भवति२, अथवा द्वौ रत्नप्रभायां द्वौ शर्क राप्रभायाम् , एको धूमप्रभायां भवति ३, अथवा द्वौ रत्नप्रभायाम् , द्वा शर्क राममायाम् एकस्तमायां भवति ४, अथवा द्वौ रत्नप्रभायां द्वौ शर्क राप्रभायाम् , एकोऽधःसप्तम्यां भवति ५ इति पञ्चमविकल्पे पश्चभङ्गाः ५। अथ त्रयः, एकः, एकः एकः' इति पष्ठविकल्पमाह-' अहवा तिन्नि रयणप्पभाए, एगे सकरप्प. भाए, एगे वालुयप्पभाए होज्जा' अथवा त्रयो रत्नप्रभायाम् , एकः शर्करामभायाम् , एको वालुकाप्रभायां भवति १, ‘एवं जाव अहवा तिन्नि रयणप्पभाए, एगे सकरप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा' एवं पूर्वोक्तरीत्या यावत् अथवा त्रयो रत्नप्रभा में दो शर्कराप्रभा में और एक नारक अधः सप्तमी पृथिवी में उत्पन्न हो जाता है) इस अन्तिम विकल्पतक जानना चाहिये इसके पहिले के तीन विकल्प इस प्रकार से हैं-" अथवा दो नारक रत्नप्रभा में, दो नारक शर्कराप्रभा में और एक नारक पंकप्रभा में उत्पन्न हो जाता है २, अथवा दो नारक रत्नप्रभा में, दो नारक शर्कराप्रभा में और एक नारक धूमप्रभा में उत्पन्न हो जाता है ३, अथवा दो नारक रत्नप्रभा में, दो नारक शर्कराप्रभा में और एक नारक तमः प्रभा में उत्पन्न हो जाता है ४"। " तीन एक एक" रूप जो छठ्ठा विकल्प है उसमें ५ विकल्प इस प्रकार से हैं-(अहवा तिनि रयणप्पभाए, एगे सकरप्पभाए एगे वालुयप्पभाए होज्जा) अथवा तीन नारक रत्नप्रभा में एक नारक शर्कराप्रभा में और एक नारक वालुकाप्रभा में उत्पन्न हो जाता है ? यह प्रथम भंग छठे विकल्प का है " एवं जाव अहवा तिनि रयणप्पभाए एगे सकरप्पभाए एगे अहे सत्तमार होज्जा) यावत् अथवा तीन नारक रत्नप्रभा में एक एगे अहे सत्तमाए होज्जा" (२) अथवा में ना२४ रनमामा, मे ना२४ श. રાપ્રભામાં અને એક નારક પંકપ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે. (૩) અથવા બે નારક રતનપ્રભામાં, બે નારક શર્કરામભામાં અને એક નારક ધુમપ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે. (૪) અથવા બે નારક રત્નપ્રભામાં, બે નારક શર્કરામભામાં અને એક નારક તમ પ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે. (૫) અથવા બે નારક રત્નપ્રભામાં, બે નારક શર્કરામભામાં અને એક નીચે સાતમી નરકમાં ઉત્પન્ન થાય છે. હવે ૩-૧-૧ રૂપ છઠ્ઠા વિકલ્પના પાંચ ભંગ કહેવામાં આવે છે – " अहवा तिन्नि रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्रभाए होज्जा" (१) અથવા ત્રણ નારક રત્નપ્રભામાં, એક નારક શર્કરા પ્રભામાં અને એક નારક quदुप्रभामा ५न्न थाय छे. "एवं जाव अहवा तिन्नि रयणप्पभाए, एगे श्रीभगवती. सूत्र: ८
SR No.006322
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 08 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages685
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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