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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०९ उ. ३१सू.६ श्रुत्वा प्रतिपन्नावधिज्ञानिनिरूपणम् ७५५ भवेत् । तस्स णं भंते ! केवइया अज्झवसाणा पण्णता ?' हे भदन्त ! तस्य खलु श्रुत्वाऽवधिज्ञानिनः कियन्ति अध्यवसानानि अध्यवसायाः प्रज्ञप्तानि ? भगवानाह'गोयमा ! असंखेज्जा' हे गौतम ! श्रुत्वासमुत्पन्नावधिक्षानिनः असंख्येयाः अध्यवसाया भवन्ति, ‘एवं जहा असोच्चाए तहेव जाव केवलवरनाणदंसणे समुप्पज्जइ ' एवं पूर्वोक्तरीत्या यथा 'अश्रुत्वा' इत्यस्मिन् आलापके उक्त तथैवात्रापि यावत्-ते अध्यवसायाः प्रशस्ताः, नो अप्रशस्ताः, तैश्च प्रशस्तैः वर्द्धमानैरध्यवसायैरनन्तेभ्यो नैरयिकेभ्यः भवग्रहणेभ्यः भवग्रहणेभ्य आत्मानं विसंयोजयति, या अपि च ता इमा नैरयिक-तिर्यग्योनिक मनुष्यदेव आत्मानं विसंयोजयति, प्रशस्तै ___अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं (तस्स णं भंते ! केवइया अज्झवसाणा पण्णत्ता) हे भदन्त ! उस श्रुत्वो अवधिज्ञानी के अध्यव. सान-अध्यवसाय कितने कहे गये हैं-उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गोयमा) हे गौतम ! (असंखेज्जा) उस श्रुत्वा अवधिज्ञानी के अध्यवसाय असंख्यात होते हैं। (एवं जहा असोचाए तहेव जाव केवलवरनाणदंसणे समुप्पज्जइ) इस तरह से जैसा इन अध्यवसायों के विषय में तथा अध्यवसायों से भी आगे केवलज्ञान दर्शन उत्पन्न होने तक का कथन अश्रुत्वा के प्रकरण में आलापक में किया गया है-वैसा ही कथन यहां पर भी किया गया जानना चाहिये । यावत्-वे अध्यवसाय उसके प्रशस्त होते हैं, अप्रशस्त नहीं होते हैं। उन वर्द्धमान प्रशस्त अध्यवसायों के प्रभाव से वह श्रुत्वा अवधिज्ञान अधिपति नैरयिक संबंधी अनन्त भवग्रहणों से अपनी मुक्ति कर लेता है अर्थात् वह मर कर नैरयिकों गौतम स्वामीना प्रश्न-( तस्स णं भंते ! केणइया अज्झवसाणा पण्णता १) હે ભદન્ત ! તે મૃત્વા અવધિજ્ઞાનીના કેટલા અધ્યવસાય કહ્યાં છે ? महावीर प्रभुने। उत्तर-“ गोयमा ! असखेज्जा" गौतम ! ते श्रुत्वा मवधिज्ञानाना असभ्यात अध्यवसाय ४ा छे. ( एवं जहाँ असोच्चाए तहेव जाव केवलवरनाणदसणे समुप्पजइ) अध्यवसायाना विषयमा तथा ज्ञान દર્શન ઉત્પન્ન થવા પર્યન્તના વિષયમાં જેવું અશ્રુત્વા અવધિજ્ઞાનીનું કથન કર. વામાં આવ્યું છે, એવું જ કથન યુવા અવધિજ્ઞાનીના વિષયમાં પણ સમજવું. તે કથનને સારાંશ નીચે પ્રમાણે સમજ–તેના તે અધ્યવસાય પ્રશસ્ત જ હોય છે, અપ્રશસ્ત હોતા નથી. તે વર્ધમાન પ્રશસ્ત અધ્યવસાયોના પ્રભાવથી નૈરયિક સંબંધી અનન્ત ભવગ્રહથી મુક્ત થઈ જાય છે એટલે કે મરીને શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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