________________
७५२
भगवतीसूत्रे भदन्त ! यदि यदा अकषायी भवेत् तदा किम् उपशान्तकषायी भवेत् ! किंवा क्षीणकषायी भवेत् ? भगवानाह- गोयमा ! नो उवसंतकसाई होज्जा ? खीण कसाई होज्जा' हे गौतम ! स श्रुत्वाऽवधिज्ञानी नो उपशान्तकषायी भवेत् , अपितु क्षीणकषायी भवेत् । गौतमः पृच्छति-'जइ सकसाई होज्जा, से णं भंते ! कड सु कसाएसु होज्जा ? ' हे भदन्त ! स श्रुत्वाऽवधिज्ञानी यदि यदा सकषायी भवेत् तदा कतिषु कषायेषु भवेत् ? भगवानाह-गोयमा ! चउसु वा, तिसु वा, मनुष्य यदि अकषायी होता है तो क्या वह उपशान्त कषायी होता है या क्षीणकषायी होता है-पूछने का तात्पर्य ऐसा है कि उत्पन्न अवधिज्ञानी यदि अकषायी जीव होता है-तो वह किस रूप से अकषायी होता है-क्या कषायें उसकी उपशान्त होती हैं इसलिये वह अकषायी होता है, या कषायें उसकी क्षीण हो गई हैं इसलिये वह अकषायी होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गोयमा ! नो उवसंतकसायी होज्जा, खीणकसायी होज्जा) हे गौतम ! जो जीव श्रुत्वा अवधिज्ञानी होता है वह उपशान्त कषायवाला होने से अकषायी नहीं होता है। किन्तुक्षीणकषायवाला होने से अकषायी होता है। ___ अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-(जइ सकसायी होज्जा, से णं भंते ! कइसु कसाएसु होज्जा) हे भदन्त ! यदि श्रुत्वा अवधिज्ञानी सकषायी होता है तो वह कितनी कषायों में होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गोयमा) हे गौतम! (चउसु वा, तिसु वा, હોય છે, તે શું તે ઉપશાન્તકષાયી હોય છે કે ક્ષીણુકવાયી હોય છે? આ પ્રશ્નનું તાત્પર્ય નીચે પ્રમાણે છે-ઉત્પન્ન અવધિજ્ઞાની મનુષ્ય જે અકષાયી હોય છે, તે શું તેના કષાયે ઉપશાન્ત થઈ જવાથી અકષાયી હોય છે કે તેના કષા ક્ષીણ થઈ જવાથી તે અકષાયી હોય છે?
महावीर प्रभुन। उत्तर-( गोयमा ! नो उवसंतकसाई होज्जा, स्त्रीणकसायी होज्जा) ॐ गौतम ! २ ०१ श्रुत्वा अवधिज्ञानी डाय छ, ते ५शान्त ४५lયવાળે હેવાથી :અકષાયી હોતું નથી, પણ ક્ષીણકષાયવાળે હોવાથી અકષાયી હોય છે.
गौतम स्वाभाना प्रश्न-(जइ सकसाई होज्जा, से णं भंते ! कइसु कसाएसु होज्जा ? ) 3 महन्त ! २ ते श्रुत्वा अवधिज्ञानी सपायी डाय छे, તે કેટલા કષાવાળો હોય છે ?
भडावीर प्रभुन। उत्तर-" गोयमा !" गौतम ! (वउसु वा, तिसु वा,
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૭