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प्रमेयचन्द्रिका २० २०९ २०३१ सू०४ अश्रुत्वा केवल वर्णनम्
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पुनः कुर्यात् , । स खलु भदन्त ! सिध्यति यावत् अन्तं करोति ? हन्त सिध्यति, यावत् अन् करोति । स० ४ ॥
टीका-गौतमः पृच्छति-' से णं भंते ! केवलिपन्नत्तं धम्मं आघवेज्ज वा, पन्नवेज्ज वा, परवेज्ज वा ?' हे भदन्त ! स खलु केवलिप्रभृतेः सकाशाद् अश्रुत्वाऽपि प्राप्तकेवलज्ञानः केवली कि केवलिप्रज्ञप्तम् केवलिभिरुपदिष्टं धर्मम् आख्यापयेद् वा सामान्यतया विशेषतया चा कथयेद् वा, प्रज्ञापयेद् वा वचन नहीं है। (से णं भंते ! पव्वावेज वा, मुंडावेज वा) हे भदन्त ! वह केवली किसी को दीक्षा देता है क्या किसी को मुण्डित करता है क्या? (णो इणढे समढे, उवदेस पुण करेजा ) हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है पर वह दीक्षा लेने के लिये उपदेश दे सकता है। (से णं भंते ! सिज्झइ, जाव अंतं करेइ ) हे भदन्त ! वह केवली सिद्ध होता है क्या ? यावत् समस्त दुःखों का अन्त करता है क्या ? (हंता, सिज्झइ जाव अंतं करेइ ) हां, गौतम ! वह केवली सिद्ध होता है यावत् समस्त दुःखों का अन्त करता है।
टीकार्थ-गौतम प्रभु से पूछते हैं-(से णं भंते ! केवलिपन्नत्तं धम्म आघवेज वा, पनवेज वा, परवेज वा) हे भदन्त ! क्या वह अश्रुत्वाकेवलज्ञानी-केवली आदि के पास विना सुने भी जिसने केवलज्ञान प्राप्त कर लिया है-ऐसा केवली क्या केवली द्वारा प्रतिपादित धर्म को सामान्य या विशेषरूप से प्रतिपादित कर सकता है ? वचनपर्याय आदि के भेद
અને એક પ્રશ્નનો ઉત્તર દીધા સિવાય આ અર્થ સમર્થ નથી. એટલે કે તે એકાદ ઉદાહરણ આપી શકે છે કે એકાદ પ્રશ્નનો ઉત્તર આપી શકે છે પણ ५३५! ४३ २४ता नयी (से गं भंते ! पव्वावेज्ज वा, मुडावेज्ज वा ?) हे ભદન્ત ! તે કેવળજ્ઞાની કેઈને દીક્ષા આપે છે ખરો ? અથવા કેઈને મંડિત अरे छे मरे। ? (णो इणढे समटे, उबदेसं पुण करेज्जा) गौतम ! मा मथ समर्थ नथी-मे मन नथी, ५४ ते दीक्षाना पहेश शछे. ( से गं भंते ! सिज्झइ, जाव अंत करेइ ) 3 महन्त ! ते सिद्ध ५४ पामे छ स२१ ? यावत् समस्त मानी सन्त रे छे मरे ? (हंता, सिज्झाइ, जाव अंतकरेइ) હા, ગૌતમ! તે કેવળજ્ઞાની સિદ્ધ થાય છે અને સમસ્ત દુઃખને અંત કરે છે.
-गौतम स्वामी महावीर प्रभुने पूछे छे ।-(से णं भंते ! केवलिपण्णत्त धम्म आघवेज्ज वा ) महन्त ! शुत मश्रुत्वा ज्ञानी (20 કેવલી આદિની સમીપે ઉપદેશ સાંભળ્યા વિના કેવળજ્ઞાન પ્રાપ્ત કરી લીધું હોય
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭