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________________ ६६२ भगवती सूत्रे I आवसेज्जा ' तत् तेनार्थेन यावत्-यस्य चारित्रावरणीयानां कर्मणां क्षयोपशमो नो कृतो भवति, स केवलिप्रभृतेः सकाशात् ब्रह्मचर्योपदेशमश्रुत्वा केवलं ब्रह्मचर्यवासं नो आवसेत् । गौतमः पृच्छति - 'असोच्चाणं भंते ! केवलिस्स वा, जाव केलेण संजमेणं संजमेज्जा' हे भदन्त । कचिज्जीवः केवलिनः सकाशाद् वा, यावत् केवलिश्रावकप्रभृतेः सकाशाद् वा संयमोपदेशमश्रुत्वा केवलेन संयमेन संयच्छेत् ? संयमंकुर्यात् ? संयमश्चात्रमतिपन्नचारित्रस्य तदविचारपरिहाराय यतनाविशेषोऽव सेयः । भगवानाह - ' गोयमा ! असोच्चाणं केवलिस्स जाव उवासियाए वा अत्येगइए केवलेणं संजमेणं संजमेज्जा ' हे गौतम! अस्त्येककः कश्चित् पुरुषः केवलिनः , के चारित्रावरणीयकर्मों का क्षयोपशम नहीं होता है वह केवली से या यावत उनके श्रावक आदि से ब्रह्मचर्य का उपदेश सुने बिना शुद्ध ब्रह्मचर्यवास में नहीं रह सकता है। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं - ( असोच्चा णं भंते! केवलिस्स वा जाब केवलेणं संजमेणं संजमेजा ) हे भदन्त ! कोई जीव ऐसा भी होता है क्या जो केवली से या यावत् केवली के श्रावक आदि से संयम के उपदेश को सुने बिना भी शुद्ध संयम द्वारा संयम की यतना कर सके ? संयम की यतना का तात्पर्य है कि स्वीकृत चारित्र के अतिचारों को दूर करने के लिये जो सावधानी रक्खी जाती है वह इसके उत्तर मैं प्रभु कहते हैं (गोयमा) हे गौतम! ( असोच्चा णं केवलिस जाब उवासियाए वा अत्थेगइए केवलेणं संजमेणं संजमेज्जा ) हां कोई एक ( से तेणट्टेणं जाव नो आवसेज्जा ) हे गौतम ! ते अरले भे मेवु ं ह्युं છે કે કોઈ જીવા કેવલી આદિને ઉપદેશ સાંભળ્યા વિના પણ બ્રહ્મચર્ય વ્રત ધારણ કરી શકે છે અને કોઈ જીવ તેમના ઉપદેશ સાંભળ્યા વિના બ્રહ્મચ વ્રત ધારણ કરી શકતા નથી. गौतम स्वाभीना प्रश्न - ( असोच्चा णं भंते ! केवलिस्स वा जाव केलेणं संजमेणं संजमेज्जा ) डे लहन्त ! डेवसी पासे अथवा तेमना श्राव वगेरेनी સમીપે સયમના ઉપદેશ સાંભળ્યા વિના શું જીવ શુદ્ધ સયમદ્વારા સંયમની યતના કરી શકે છે ખરા ? ( સ્વીકૃત ચારિત્રના અતિચારાને દૂર કરવા માટે જે સાવચેતી રાખવામાં આવે છે તેને સંયમયતના કહે છે. ) भहावीर प्रभुना उत्तर- " गोयमा ! " डे गौतम ! ( अम्रोच्चाण' केव लिख जाव जवासियाए वा अत्थेगइए केवलेण संज्ञमेणं संजमेज्जा ) ओई श्री भगवती सूत्र : ৩
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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