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________________ ६५८ भगवतीसूत्रे धर्मान्तरायिकाणि तेषां वीर्यान्तरायचारित्रमोहनीयभेदात्मकानामित्यर्थः क्षयोपशमः कृतो भवति, स खलु जीवः केवलिनः सकाशाद् वा यावत् केवलिश्रावकप्रभृतेः सकाशाद् वा पत्रज्योपदेशमश्रुत्वावि खलु मुण्डो भूबा अगारात् अनगारिताम् प्रव्रजेत् , अथ च 'जस्स णं धम्मंतराइयाणं कम्माणं खोवसमे नो कडे भवइ, से णं असोच्चा केवलिस्स वा जाव मुंडे भवित्ता जाव णो पव्वएज्जा' यस्य खलु जीवस्य धर्मान्तरायिकाणां कर्मणां क्षयोपशमो नो कृतो भवति, स खलु जीवः केवलिनो वा सकाशात यावत् केलिश्राक्कप्रभृतेर्वा सकाशात् प्रवज्योपदेशमश्रुत्वा मुण्डो भूत्वा यावत् अगारात् अनगारितां नो प्रव्रजेत् । तनिगमयन्नाहसे तेणटेणं गोयमा ! जाव नो पन्चएज्जा' हे गौतम ! तत् तेनार्थेन यावत्पशम किया हुआ होता है-अथात् जिस जीव के चारित्र धारण करने में विघ्नकारक वीर्यान्तराय और चारित्रमोहनीय कर्मों का क्षयोपशम होता है-ऐसा जीव केवली से या यावत् केवली के श्रावक आदि से प्रव्रज्या का उपदेश विना सुने भी मुण्डित होकर गृहस्थावस्था के परित्यागपूर्वक अनगारावस्था को धारण कर सकता है। तथा-(जस्स गं धम्मंतराइयाणं कम्माणं खओवसमे नो कडे भवइ-से णं असोच्चा केवलिस्स वा जाव मुंडे भवित्ता जाव णो पवएज्जा) जिस जीव के चारित्र धारण करने में वीर्यान्तराय और चारित्रमोहनीय का क्षयोपशम किया हुआ नहीं होता है-ऐसा जीव के केवली से या यावत् उनके श्रावक आदि से प्रव्रज्या धारण करने का जबतक उपदेश नहीं सुनता तब तक वह मुण्डित होकर गृहस्थावस्था के परित्याग से अनगारावस्था को धारण नहीं कर सकता है। (से तेणटेणं गोयमा ! जाव नो पन्चएज्जा) इस कारण हे गौतम ! मैंने “ यावत् जिस के धर्मान्तरायिक હોય છે, તે જીવ કેવલી પાસેથી અથવા તેમના શ્રાવક વગેરે પાસેથી પ્રત્રજ્યાનો ઉપદેશ સાંભળ્યા વિના પણ મુંડિત થઈને ગૃહસ્થાવસ્થાના પરિત્યાગ५४ मा२।१२था (साधु पर्याय) मी२ ४२ श छे. ५२न्तु “ जस्सणं धम्म तराइयाणं कम्माण खओवसमे नो कडे भवइ, से णं असोच्चा केवलिस वा जाव मुडे भवित्ता जाब णो पव्वएज्जा" २ ना वीर्यान्तराय अने यात्रि મેહનીય ક્ષપશમ થયે હોતો નથી, એ જીવ કેવલી પાસેથી અથવા તેમના શ્રાવક વગેરે પાસેથી પ્રવજ્યા ધારણ કરવાને ઉપદેશ જ્યાં સુધી સાંભળતું નથી ત્યાં સુધી તે મુંડિત થઈને ગૃહસ્થાવસ્થાને પરિત્યાગ કરીને मारावस्था धा२१ ४२१ शत नथी. " से तेणट्रेण गोयमा! जाव नो पधएज्जा" હે ગૌતમ! તે કારણે મેં એવું કહ્યું છે કે કોઈક જીવ કેવલી આદિની સમીપે श्री.भगवती सूत्र : ७
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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