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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०८ उ० ८ सू०३ कमबन्धस्वरूपनिरूपणम् ५५ बध्नाति, 'पुरिसपच्छाकडो वि बंधइ २ ' पुरुषपश्चात्कृतोऽपि बध्नाति, २ , 'नपुंसगपच्छाकडो वि बंधइ ३' नपुंसकपश्चात्कृतोऽपि बध्नाति ३, 'इत्थीपच्छाकडा वि बंधंति४, स्त्रीपश्चात्कृता अपि बध्नन्ति४, 'पुरिसपच्छाकडा वि बंधंति ५, पुरुषपश्चात्कृता अपि बध्नन्ति ५, ' नपुंसगपच्छाकडा वि बंधति ६, नपुंसकपश्चात्कृता अपि वध्नन्ति६, अथवा इत्थीपच्छाकडो य पुरिसपच्छाकडो य बंधइ ७, अथवा स्त्रीपश्चात्कृतश्च पुरुषपश्चात्कृतश्च बध्नाति ७, एवं बंधई' (१) जो अवेदक जीव स्त्रीपश्चात्कृत होता है वह भी इस ऐपिथिक कर्मका बंध करता है 'पुरिसपच्छाकडो वि बंधई' (२) जो पुरुषपश्चात्कृत होता है वह भी इस ऐपिथिक कर्म का बंध करता है, 'नपुंसगप च्छाकडो वि बंधइ ३' और जो नपुंसकपश्चात्कृत होता है वह भी इस ऐर्यापथिक कर्म का बंध करता है ' इत्थीपच्छाकडा वि बंधंति ४' जो जीव-अवेदक जीव स्त्रीपश्चात्कृत होते हैं वे भी इस ऐपिथिक कर्म का बंध करते हैं। 'पुरिस पच्छाकडा वि बंधंति ५ ' जो अवेदक जीव पुरुषपश्चात्कृत होते हैं वे भी इस ऐपिथिक कर्म का बंध करते हैं। 'नपुंमग पच्छाकडा वि बंधंति ६' जो अवेदक जीव नपुंसक पश्चाकृत होते हैं वे भी ऐर्यापथिक कर्म का बंध करते हैं। 'अहवा-इत्थी पच्छाकडो य, पुरिसपच्छाकडो य बंधइ ७' अथवा जो अवेदक जीव स्त्रीपश्चात्कृत होता है तथा पुरुषपश्चात्कृत होता है वह भी ऐापथिक
હવે ગૌતમ સ્વામીના પ્રશ્નોને ઉત્તર આપતા મહાવીર પ્રભુ કહે છે કે " गोयमा ! , उ गीतम! ( इत्यीपच्छाकडे। वि बधइ) (१) २ वह જીવ સ્ત્રી-પશ્ચાદ્ભૂત હોય છે તે પણ ઐર્યાપથિક કર્મને બંધ કરે છે. (૨) पुरिसपच्छाको वि बधइ) ५२१ पश्चात पण मर्या५थि भनी हे छ(3) "नपुंसगाच्छाकडी वि बधई" नस५५यात १ ५४ अर्या५थि भनी म ४२ छे. (४) " इत्थी पच्छाकडा वि बंधति” स्त्री-५श्यात भ६४ ७३ ५५ ॥ यापथि भने ५४२ छे. (५) पुरिस पच्छाकडा वि बधति " पुरुष ५श्यात मव । ५४ अर्यापथि, मन रे छ. (6) " नपुसंगपच्छाकडा वि वधति" नघुस ५५यात अवे ७ ५५ अर्या५थि मध ४२ छे. (७) "अहवा-इत्थी पच्छाकडो य, पुरिस पच्छाकडेो य बंधइ" २ सव६४ ७१ स्त्री-५९यात हाय छे तथा पुरुष ५श्यात्कृत डाय छ, ते ५ अर्या५थि मा ५ ४२ छ. “ एवं पप
श्री.भगवती सूत्र : ७