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________________ ६३६ भगवतीस्चे यावत् नो संवृणुयात् । अश्रुत्वा खलु भदन्त ! केवलिनो यावत् केवलम् आभिनिबोधिकज्ञानम् उत्पादयेत् ? गौतम ! अश्रुत्वा खल्लु केवलिनो वा यावत् उपासिकाया वा अस्त्येककः केवलम् आभिनिबोधिकज्ञानमुत्पादयेत् , अस्त्येकका केवलम् आभिनिबोधिकज्ञानं नो उत्पादयेत् । तत् केनार्थेन यावत् नो उत्पादयेत् ? उपासिका से केवलिप्रज्ञप्त धर्म का श्रवण किये विना शुद्ध संवर द्वारा आस्रवनिरोध रूप संवर नहीं होता है। (से तेणटेणं जाव नो संवरेज्जा) इस कारण हे गौतम ! मैंने ऐसा कहा है कि यावत् संवर नहीं करता है । (असोच्चा णं भंते ! केवलिस्स जाव केवलं आभिणियोहियणाणं उप्पाडेज्जा) हे भदन्त ! केवली से या यावत् उनके पक्ष की उपासिका से केवलिप्रज्ञप्त धर्म का श्रवण किये विना भी क्या कोई जीव शुद्ध आभिनिबोधिक ज्ञान उत्पन्न कर सकता है ? (गोयमा) हे गौतम! (असोचा णं केवलिस्स वा जाव उवासियाए वा अत्थेगइए केवलं आभिणिबोहियनाणं उप्पाडेज्जा, अस्थेगइए केवलं आभिणिबोहियनाणं नो उप्पाडेजा) केवली से या यावत् उनके पक्ष की उपासिका से केवलिप्रज्ञप्त धर्मका श्रवण किये विना भी कोई एक जीव शुद्ध आभिनियोधिक ज्ञान उत्पन्न कर सकता है, और कोई जीव शुद्ध आभिनियोधिक ज्ञान उत्पन्न नहीं कर सकता है ? (से केणटेणे जाव नो उप्पाडेजा) हे भदन्त ! आप किस कारण से कहते हैं कि केवली से या यावत् उनकी पाक्षिक उपासिका से केवलिप्रज्ञप्त धर्म का श्रवण किये विना भी कोई जीव शुद्ध तेणट्रेणं जाव नो संवरेज्जा ) 3 गौतम ! ते २0 में से ४युं छे. (मडी " १२ ४६१ शत। नथी, " त्या सुधानपाठ ड ४३.) (असोज्वाणं भंते ! केवलिस्स जाव केवल आभिनिबोहियणाणं उप्पाडेजा?) હે ભદન્ત! કેવલી પાસેથી અથવા કેવલી પાક્ષિક ઉપાસિકા પર્વતની કઈ પણ વ્યક્તિ પાસેથી કેવલી પ્રજ્ઞસ ધર્મનું શ્રવણ કર્યા વિના કોઈ જીવ શુદ્ધ આભિनमाथि ज्ञान उत्पन्न ४३श श छ परे ? (गोयमा !) गौतम ! (असोच्चाणं केवलिस वा जाव उवासियाए वा अत्थेगइए केवलं आभिणिबोहियनाणं उप्पाडेज्जा, अत्थेगइए केवलं आभिणिबोहियनाणं नो उप्पाडेज्जा) पक्षी पाथी અથવા તેમના પક્ષની ઉપાસિકા પર્વતની કોઈ વ્યક્તિ પાસેથી કેવલી પ્રજ્ઞાત ધર્મનું શ્રવણ કર્યા વિના પણ કેઈ જીવ શુદ્ધ આભિનિબંધિક જ્ઞાન ઉત્પન્ન કરી શકે છે અને કેઈ જીવ શુદ્ધ આભિનિધિક જ્ઞાન ઉત્પન્ન કરી શકો नयी. (से केणद्वेण जाव नो उप्पाडेज्जा १ ) 3 महन्त ! २५ ॥ ॥२) એવું કહે છે કે કેવલી પાસે અથવા તેમના પક્ષની ઉપાસિકા પર્યન્તની કઈ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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