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प्रमेयचन्द्रिका रो० २०८ उ०१: सू० ८ जीवादीनां पुद्गलपुदगलिविचार: ५६७ न्द्रिय - रपर्शेन्द्रियाणि प्रतीत्य पुद्गली जीवं प्रतीत्य पुद्गलः, तत् तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते-जीवः पुद्गली अपि, पुद्गलोऽपि । नैरयिकः खलु भदन्त ! किं पुद्गली, पुद्गलः ? एवमेव, एवं यात् वैमानिकः नवरं यस्य यावन्तीन्द्रियाणि, तस्य तावन्ति मणितव्यानि । सिद्धः खलु भदन्त किं पुद्गली पुद्गलः ? गौतम ! नो पुद्: दिघ, घाणेंदिय, जिभिदिय, फामिंदियाइं पडुच्च पोग्गली, जीवं पडुच्च पोग्गले, से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ जीवे पोग्गली वि) जैसे कोई पुरुष छत्र से छत्री, दण्ड से दण्डी, घट से घटी, पट से पटी और कर से करी कहलाता है, उसी तरह से जीव भी श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुइन्द्रिय घ्राणेन्द्रिय, जिद्वेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय की अपेक्षा से पुद्गली कहलाता है तथा जीव की अपेक्षा से पुद्गल कहलाता है । इस कारण हे गौतम ! मैंने ऐसा कहा है कि जीव पुद्गली भी है और पुद्गल भी हैं। (नेरइए णं भंते ! किं पोग्गली, पोग्गले ) हे भदन्त ! नेरयिक जीव क्या पुद्गली है या पुद्गल है ? ( एवं चेव-एवं जाव वेमाणिए-नवरं जस्स जब इंदियाई तस्स तइ वि भाणियब्वाइं) हे गौतम! इस विषय में जीव की तरह कथन जानना चाहिये। इसी तरह का कथन यावत् वैमानिक तक समझना चाहिये। किन्तु जिस जीव के जितनी इन्द्रियां हों उस जीव के उतनी इन्द्रियां कहनी चाहिये। (सिद्धेणं भंते ! किं पोग्गली पोग्गले) हे भदन्त ! सिद्ध क्या पुद्गली हैं या पुद्गल हैं ? ( गोयमा) हे गौतम ! (नो
जिभिदिय, फासि दियाई पडुच्च पोग्गली, जीवं पडुच्च पोग्गले, से तेणट्रेणं गोयमा ! एव वुच्चइ जीवे पोग्गलो वि पोगले वि ) म छत्रधारीन છત્રી, દંડધારીને દંડી, ઘટધારીને ઘટી, પટાવાળાને પટી અને કરવાળાને કરી કહેવામાં આવે છે, એ જ પ્રમાણે શ્રોત્રેન્દ્રિય, ચક્ષુઈન્દ્રિય, ઘ્રાણેન્દ્રિય, જીવાઈન્દ્રિય અને સ્પર્શેન્દ્રિયની અપેક્ષાએ પુદ્ગલી કહેવાય છે તથા જીવની અપેક્ષાએ પુતલ કહેવાય છે. હે ગૌતમ! તે કારણ મેં એવું કહ્યું છે કે જીવ પુલી ५५४ छ भने पुस ५ छ. ( नेरइए णं भते ! कि पोग्गली, पोगले ?) महन्त ! ना२४ ७१ शु द्धती छ है पुरस छ ? (एव चेव-एव' जाव वेमाणिए-नवर जस्स जइ इंदियाई तस्स तइ वि भाणियब्वाइं) गौतम ! म। વિષયમાં જીવના જેવું જ કથન સમજવું. એ જ પ્રકારનું કથન વમાનિક પર્યતના જી વિષે પણ સમજવું. પરંતુ જે જીવને જેટલી ઈન્દ્રિયે હોય, તે सनी तेरी धन्द्रियो ४३वी नये. ( सिद्धे णं मते ! कि पोग्गली, पोगगले ? ) 3 महन्त ! सिद्ध शुYखी छ ? Y८ छ ? (गोयमा ! ) हे गौतम !
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭