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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ८ उ.१० सू४ पुद्गलास्तिकायस्वरूपनिरूपणम् ४९९ टीका-'एगे भंते ! पोग्गलत्थिकायप्पएसे किं दव्यं १?' गौतमः पृच्छतिहे भदन्त ! एकः पुद्गलास्तिकायप्रदेशः पुद्गलास्तिकायस्य एकाणुकादिपुद्गलराशेः प्रदेशः-निरंशोऽशः पुद्गलास्तिकायप्रदेशः परमाणुरूपः किं द्रव्यम्-गुणपर्याययोगि वर्तते ? 'किं वा-'दबदेसे २, दवाई ३, दबदेसा ४,' द्रव्यदेशो द्रव्यावयवो वर्तते, अथवा द्रव्यप्रदेशा वा ? वर्तते, इत्येवमेकत्वबहुत्वाभ्यां चत्वारः प्रत्येक विकल्पा भवन्ति, एवं द्विकसंयोगेऽपि चतुरो विकल्पान प्रश्नयति- उदाहु दव्यं च दबदेसे य ५' उताहो अथवा उक्तपरमाणुरूपः पुद्गलास्तिकायप्रदेशः किं इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है- एगे भंते ! पोग्गलस्थिकायप्पएसे किं दव्वं ) हे भदन्त ! पुद्गलास्तिकाय का एक प्रदेश-एक परमाणु आदि वाली पुद्गलराशिका-निरंश अंश रूप एक प्रदेश एक पुद्गल परमाणु-क्या द्रव्यरूप है-गुणपर्यायवाला है। “गुण पर्यायवद्रव्यम् " ऐसा द्रव्य का लक्षण है अतः जिसमें गुण और पर्याय पाये जाते हैं वह द्रव्य है सो क्या पुद्गलास्तिकाय का एक परमाणुरूप प्रदेश द्रव्यरूप है ? या “दव्य देसे २" द्रव्य का एक अवयवरूप है ? (दव्वाइं) दव्वदेसा" या वह अनेक द्रव्यरूप है ? या द्रव्य के अनेक अवयवरूप है ? इस तरह से एकत्व को लेकर २ विकल्प और अनेकत्व को लेकर २ विकल्प इस प्रकार ये ४ विकल्प यहां किये गये हैं। इनमें से दिक संयोग को लेकर अब और ४ विकल्प इस प्रकार से पूछे गये हैं-क्या वह पुद्गलास्तिकाय का एक प्रदेश ( उदाहु दव्वं दव्वदेसे य ) एक द्रव्यरूप भी है-गुणपर्यामनुसक्षीन गौतम स्वामी महावीर प्रसुने मेवा प्रश्न पूछे 3-(एगे भंते ! पोगगलत्थिकायपएसे कि दा') 3 महन्त ! पुसास्तियने में प्रदेश-से પરમાણુ આદિવાળી પુલ રાશિના નિરશ અંશરૂપ એક પ્રદેશ-એક પુલ ५२मा-शुद्र०५३५ छ ( गुथु पर्यायवाणी छे ) ? "गुणपर्यायवद्र्व्य म्' या પ્રકારનું દ્રવ્યનું લક્ષણ છે. જેમાં ગુણ અને પર્યાયને સદૂભાવ હોય છે, તેને દ્રવ્ય કહે છે. અહીં એવો પ્રશ્ન પૂછવામાં આવ્યું છે કે “શું પુલાસ્તિકાયને मे ५२भा ३५ प्रदेश २०५३५ छ ? 3 " दव्वदेसे” 'द्र०यना मे अ१य१ ३५ छे १ ' " दवाई, दबदेसा ?” में “ ते मने द्र०५३५ छ ?'' ते દ્રવ્યના અનેક અવયવરૂપ છે ?” આ પ્રમાણે એકત્વની અપેક્ષાએ બે વિકલ્પ અને અનેકત્વની અપેક્ષાએ બે વિકલ્પ મળીને ચાર વિકલ્પ બન્યા છે. હવે ત્રિક સંયોગની અપેક્ષાએ જે ચાર વિકલ્પ થાય છે, તેમને વિષે આ પ્રમાણે प्रश्नी ५७मा भाव छ-"शु ते पुरवास्तियना से प्रदेश “ उदाहु दव दबदेसे य !" मे द्रव्य३५ ५५ छ ( गुपयायया छ) भने द्रव्यना શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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