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प्रमेrचन्द्रिका टीका श० ८ उ० १० सू. १ शीधश्रुतादिनिरूपणम्
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तीति ३, तथा च समुदितयोः शीलतयोरेव श्रेयस्त्वं सिद्धमिति, अथ सर्वतो निकृष्टं पक्षमाह - ' तत्थ णं जे से चउत्थे पुरिसजाए, सेणं पुरिसे असीलव, असूयव, अणुवर, अविण्णायधम्मे' तत्र खलु चतुर्षु पूर्वोक्तेषु मध्ये यः स चतुर्थी नो शीलसम्पन्नः, नो श्रुतसम्पन्नः पुरुषजात उक्तः स खलु पुरुषः अशीलवान् अश्रुतवान् व्यपदिश्यते, यतोहि अनुपरतः पापादनिवृत्तः, अविज्ञातधर्मा च भवति, अत एव 'एस णं गोयमा ! मए पुरिसे सव्वविराहए पत्ते ' हे गौतम ! एष खलु अशीलवान् अश्रुतवान् पुरुषो मया सर्वविराधकः प्रज्ञप्तः सर्वस्य मोक्षमार्गत्रयस्य विराधकत्वात् ॥ ० १ ॥
गया है। मिध्यादृष्टि जीव वास्तविकरूप में विज्ञातधर्मा नहीं होता है। इस तरह समुदित श्रुत और शील इन दोनों में ही श्रेयस्त्व सिद्ध होता है। अब इन दोनों से रहित जो पक्ष है वह (तत्थ णं जे से चउत्थे पुरसजाए से णं पुरिसे असीलवं असुयवं अणुवरए अविण्णायघम्मे ) इस सूत्र पाठ द्वारा प्रकट किया गया है इसमें यह कहा गया है कि जो चौथे नंबर का पुरुष है वह न शीलवाला होता है और श्रुतवाला होता है- - अतः वह न पाप से निवृत्त होता है और न धर्मज्ञान से युक्त होता है । इस कारण ( एस णं गोयमा ! मए पुरिसे सव्वविराहए पन्नते ) हे गौतम ! मैंने ऐसे पुरुष को सर्वविराधक कहा है। क्यों कि सम्पूर्ण मोक्षमार्गत्रय का विराधक होता है ॥ १ ॥
કહ્યો છે મિથ્યાષ્ટિ જીવ વાસ્તવિક રૂપે વિજ્ઞાતધર્મો (ધના જ્ઞાતા ) હાતે નથી. આ રીતે સમ્રુતિ ( સમુદાય રૂપ) શીલ અને શ્રુત એ બન્નેની આરાધના દ્વારા જ શ્રેયસ્ત્વની સિદ્ધિ થાય છે. હવે આ બન્નેથી રહિત જે પક્ષ છે તેની વાત કરવામાં આવે છે—
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तत्थ णं जे से चउत्थे पुरिसजाए से र्ण पुरिसे असीलव' असुयव अणुate अविण्णायघम्मे " ते यार प्रहारना पुरुषाभांधी ने थोथा अारना પુરુષ છે તે શીલવાન પણ હોતા નથી અને શ્રુતવાન પણ હાતા નથી. તેથી તે પુરુષ પ્રાણાતિપાતાદિ પાપથી નિવૃત્ત પણ થતા નથી અને ધજ્ઞાનથી યુક્ત या होता नथी. ते अर ( एस णं गोयमा ! मर पुरिसे सव्वविराहर पण्णत्ते ) હે ગૌતમ ! એવા પુરુષને મેં સવિરાધક કહ્યો છે, કારણ કે તે સ ંપૂર્ણ રીતે મેાક્ષ માત્રયના વિરાધક હાય છે, તા સૂ૧૫
श्री भगवती सूत्र : ৩