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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी० श० ८ ३० ९ ० ९ कार्मणशरीर प्रयोगबन्धवर्णनम् ३९५ , न्त मिथ्यात्वतया, ' तिब्वचारितमोहणिज्जयाए, मोहणिज्जकम्मासरीर - जाव पओगबधे' तीव्र चारित्रमोहनीयतया कपायचारित्रमोहनीयभिन्नेन नोकषायलक्षण चारित्र मोहनीयेनेत्यर्थः मोहनीयकार्मणशरीर यावत् प्रयोगनामकर्मण उदयेन मोहनीय कार्मणशरीरप्रयोगवन्धो भवतीति भावः, गौतमः पृच्छति - ' नेरइयाउयमोह से, अत्यन्तलोभ से, तीव्रदर्शनमोहनीय से, - अत्यन्त मिथ्यात्व से, ( तिब्वचारितमोह णिज्जयाए ) तीव्र चारित्रमोहनीय से, जीव के (मोहजिम्मासरीर जाव पओगवधे) मोहनीय कार्मणशरीरप्रयोग नामक कर्म के उदय से मोहनीयकार्मणशरीरप्रयोग का बंध होता है। यहाँ (तिव्यचारितमोह णिज्जाए ) इस पाठ से तीव्र चारित्रमोहनीयरूप जो कषाय मोहनीय है उससे भिन्न नो कषाय रूप चारित्रमोहनीय ग्रहण किया गया है। तात्पर्य कहने का यह है कि चारित्रमोहनीय कर्म के कषायचारित्रमोहनीय और अकषायचारित्रमोहनीय इस तरह से दो भेद हैं। इनमें से प्रथम भेद का कथन तो सूत्रकार ने ( तिव्वकोहाए ) आदि पदों द्वारा प्रकट ही कर दिया है। अब रहा अकपायचारित्रमोहनीय ( तिब्वचारितमोहणिज्जाए ) इस पद द्वारा उसका भी कथन कर दिया गया है। इस तरह तीव्रक्रोधादिक से, तीव्रमिथ्यात्व से और अकषाय चारित्रमोहनीय से एवं मोहनीयकार्मण शरीरप्रयोगरूप कर्म के उदय से इस जीव के मोहनीय कार्मणशरीरप्रयोग का बंध होता है। भोडनीयथी ( अत्यन्त मिथ्यात्पथी), ( तिव्वचारितमोहणिज्जयाए ) तीव्र यारित्र भोहनीयथी मने ( मोहणिज्ज कम्मा सरीर जावप्पओगधे ) भोडुनीय अर्भाशु શરીર પ્રયેગ નામક કર્મીના ઉયથી જીવ મેહનીય કાણુ શરીર પ્રયાગના बंध कुरै छे. अहीं “ तिव्वचारितमोह णिज्जाए ” तीव्र यारित्र मोहनीय३य કષાય મેાહનીય છે તેના કરતાં ભિન્ન નેકષાયરૂપ ચારિત્ર મેાહનીય ગ્રહણ કરવામાં આવેલ છે. આ કથનનું તાત્પર્ય એ છે કે ચારિત્ર માહનીયના કષાય ચારિત્ર માહનીય અને અકષાય ચારિત્ર મેાહનીય, આ બે ભેદ છે. તેમાંના थडेला लेहनुं अथन तो सूत्रारे " तिव्वकोहाए " आदि यही द्वारा अउट दुरी ४ हीधुं छे. हवे रधुं भाषाय व्यारित्र मोहनीय. " तिव्वचारित मोहणिज्जाए " આ પદ દ્વારા તેનું કથન પણુ કરવામાં આવ્યું છે. આ રીતે તીવ્ર ક્રોધાદિકથી, તીવ્ર મિથ્યાત્વથી અને અકષાય ચારિત્ર માહનીયથી અને મેહનીય કાણુ શરીર પ્રયાગરૂપ કર્મના ઉદયથી આ જીવ માહનીય કાણુ શરીર પ્રયોગના અધ કરે છે. श्री भगवती सूत्र : ৩
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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