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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०८ उ० ९ सू०८ तैजसशरीरप्रयोगबन्धनिरूपणम् ३६५ तैजसशरीरमयोगबन्धः, तैजसशरीरप्रयोगबन्धः खलु भदन्त ! कि देशबन्धः, सर्वबन्धः ? गौतम ! देशबन्धः, नो सर्वबन्धः । तैजसशरीरप्रयोगबन्धः खलु भदन्त ! कालतः कियच्चिरं भवति ? गौतम ! द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-अनादिको वा अपर्यवसितः, अनादिको वा सपर्यवसितः, तेजसशरीरप्रयोगबन्धान्तरं खलु भदन्त ! कालतः कियच्चिरं भवति? गौतम ! अनादिकस्य अपर्यवसितस्य नास्ति अनन्तरम् , अनादिकस्य सपर्यवसितस्य नास्ति अन्तरम् , एतेषां खलु भदन्त ! जीवानां न्त ! तेजस शरीरप्रयोगबंध देशबंधरूप है या सर्वच धरूप है ? (गोयमा) हे गौतम ! (देसबंधे, नो सव्वबंधे ) तैजस शरीरप्रयोगबंध देशवधरूप है सर्वबंधरूप नहीं है। (तेयासरीरप्पओगबंधे णं भंते ! कालओ केवच्चिरं होइ) हे भदन्त ! तैजसशरीरप्रयोग बंध काल की अपेक्षा से कबतक रहता है ? (गोयमा) हे गौतम! (दुविहे पण्णत्ते) तेजस शरीरप्रयोगबंध दो प्रकार का कहा गया है । (तं जहा) जो इस प्रकार से है-(अणाइए वा अपज्जवसिए, अणाइए वा सपजवसिए) अनादि अपर्यवसित और अनादि सपर्यवसित (तेयासरीरप्पओगबंधतरं गं भंते ! कालओ केवच्चिरं होइ ) है भदन्त ! तैजस शरीर प्रयोगबंध का अन्तर काल की अपेक्षा कितना होता है ? (गोयमा) हे गौतम ! (अणाइयस्स अपजवसियस्स नस्थि अंतरं, अणाइयस्स सपजवसियस्स नत्थि अंतरं ) अनादि अपर्यवसित एवं अनादि सपर्यवसित इन दोनों प्रकार के तैजस शरीरप्रयोगबंध का अंतर नहीं है। (एएसिणं भंते ! जीवाणं (तेया सरीरप्पओग बधे भंते ! कि देसबधे, सव्वबधे ? ) महन्त ! તેજસ શરીર પ્રયોગબંધ શું દેશબંધરૂપ હોય છે, કે સર્વબંધરૂપ હોય છે? (गोयमा !) गौतम ! ( देसबधे नो सव्वबधे) तेरीस शरीर प्रयो। म हेश५५३५०४ जाय छे, सय ५३५ डा। नथी. ( तेयासरीरप्पभोगबधे भंते ! कालओ केवच्चिर होइ ?) महन्त ! तेस शरीर प्रयोग मध गनी अपेक्षासे यां सुधी २७ छ ? (गोयमा!) 3 गौतम! (दुविहे पण्णत्तेET) કાળની અપેક્ષાએ તૈજસ શરીરપ્રયાગબંધના નીચે પ્રમાણે છે २ ४ छे-अणाइए वा अपज्जवसिए, अणाइए वा सपज्जवसिए) (१) 416 अपयवसित, (२) मनाहि स५ सित. ( तेयासरीरप्पओगवधतरण भंते ! कालओ केवच्चिर होइ ?) 8 सह-त! तेस शरी२ प्रयोग धनुं मत आना अपेक्षा राय छ ? ( गोयमा !) 3 गौतम ! ( अणाइयस्स अपज्जव. सियस्स नत्थि अंतर, अणाइयस्स सपज्जवसियस नत्थि अतर') मा अ५. વસિત અને અનાદિ સપર્યવસિત, આ બન્ને પ્રકારના તજય શરીર પ્રયોગ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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