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________________ ३४४ भगवतील भवतीति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा! सबंधतरंजहण्णेणं बावीसं सागरोवमाई वासपुहुत्तममहियाई उक्कोसेणं अणंतं कालं वणस्सइकालो' हे गौतम ! ग्रैवेयककल्पातीतदेववैक्रियशरीरपयोगस्य सर्वबन्धान्तर जघन्येन द्वाविंशतिः सागरोपमानि वर्ष पृथक्त्वाधिकानि भवति, उत्कृष्टेन तु अनन्तं काले वनस्पतिकालरूपं भवति, 'देसबंधंतरं जहण्णेणं वासपुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो' देशवन्धान्तरं च जघ. न्येन वर्ष पृथक्त्वम् , उत्कृष्टेन वनस्पतिकालरूपमनन्तं कालं भवति । गौतमः पृच्छति-'जीवस्स णं भंते ! अणुत्तरोववाइयपुच्छा' हे भदन्त ! जीवस्य खलु ___ अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-(गेवेन्ज कप्पाइयपुच्छा) हे भदन्त ! अवेयक कल्पातीत देवों के क्रियशरीरप्रयोग का बन्धान्तर काल की अपेक्षा से कितना है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गोयमा) हे गौतम ! (सव्वबंधंतरं जहण्णेणं बावीसं सागरोवमाइं वासपुहुत्तमम्भहियाई उक्कोसेणं अणंतं कालं वणस्सहकालो) ग्रैवेयक कल्पातीत देवों के वैक्रियशरीरप्रयोग का सर्वबंधान्तर जघन्य से वर्षपृथक्त्व अधिक २२ सागरोपम का है और उत्कृष्ट से अन्तर वनस्पतिकालरूप अनन्तकाल का है। (देख बंधंतरं जहण्णेणं वासपुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो) तथा अवेयक कल्पातीत देवों के वैक्रियशरीरप्रयोग का देश धान्तर जघन्य से वर्षपृथक्त्वरूप है और उत्कृष्ट से वनस्पतिकालरूप अनन्तकाल का है। अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं- जीवस्स णं भंते ! अणुत्तरोववाइयपुच्छा ) हे भदन्त ! जो जीव अनुत्तर विमान में उत्पन्न શરીર પ્રગનું બંધાન્તર કાળની અપેક્ષાએ કેટલું હોય છે ? તેને ઉત્તર सापता महावीर प्रभु ४३ छ -“ गोयमा " 3 गौतम ! “ सव्वबंध तर जहण्णेण बावीसं सागरोवमाइं वासपुहुत्तमब्भहियाई, उक्कोसेण अणंतं कालं-वणस्सइकालो" अवय ४६५ातात हेवान यशरीर प्रयोगर्नु समधान्तर ઓછામાં ઓછું ૨૨ સાગરોપમ અને વર્ષ પૃથકત્વ કાળ પ્રમાણ છે, અને धाभां पधारे मत२ वनस्पति३५ मन छे. " देसबधतर जहण्णेणं वासपुहुत्तं, उक्कोसेणं क्णस्सइकालो ” तथा अवेय: ४६पातीत हेवाना વિક્રિય શરીર પ્રયોગનું દેશબંધાન્તર ઓછામાં ઓછું વર્ષ પૃથકૃત્વ પ્રમાણ કાળ રૂપ અને વધારેમાં વધારે વનસપતિકાળ રૂપ અનંતકાળનું છે. गौतम स्वाभानी प्रश्न-" जीवस्स ण भंते ! अणुत्तरोषवाइयच्छा " હે ભદન્ત કેઈ એક જીવ અનુત્તર વિમાનમાં ઉત્પન્ન થયે હેય. ત્યાંની સ્થિતિ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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