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________________ २९६ भगवतीसूत्रे स किं वायुकायिकैकेन्द्रिय क्रियशरीरप्रयोगबन्धः? किं वा अवायुकायिकैकेन्द्रियबैंक्रियशरीरप्रयोगबन्धो भवति ? भगवानाह-' एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओगाहणसंठाणे वेउब्धियसरीरभेदो तहा भाणियव्यो' हे गौतम ! एवंरीत्या एतेन पूर्व पक्षोक्तेन अभिलापक्रमेण यथा प्रज्ञापनायाम् अवगाहनासंस्थाने एकविंशतितमे पदे वैक्रियशरीरस्य भेदो निरूपितस्तथा अत्रापि भणितव्यः तथा च एकेन्द्रिय वैक्रियशरीरप्रयोगवन्धो वायुकायिकस्यैव एकेन्द्रियस्य भवति, नो अवायुकयिकस्य पृथिवीकायिकादेरेकेन्द्रियस्येत्यर्थः, 'जाव पज्जत्तसव्वट्ठसिद्धअणुत्तरोववाइयकप्पाईयवेमाणियदेवपंचिंदियवेउम्बियसरीरप्पओगबंधे य, अपज्जत्तसव्वट्ठसिद्धअणुत्तरोववाइय जाव पओगबंधे य ' यावत्-पर्याप्तकपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकमनुष्यएकेन्द्रिय वैक्रियशरीर प्रयोगबंध कहा गया है वह वायुकायिक एकेन्द्रिय जीवका वैक्रिय शरीरप्रयोगबंध कहा गया है या अन्य एकेन्द्रिय जीवोंका वैक्रियशरीरप्रयोगबध कहा गया है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं( एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओगाहणासठाणे वेउवियसरीरभेदो तहा भाणियन्यो ) हे गौतम ! इस पूर्वपक्षोक्त अभिलापक्रम से जैसा प्रज्ञापना में अवगाहनासंस्थान में २१ वें पद में वैक्रिय शरीर का भेद कहा गया है उसी तरह से यहां पर भी वह कह लेना चाहिये । तथा च-एकेन्द्रिय वैक्रिय शरीरप्रयोगबंध वायुकायिक एकेन्द्रिय जीव के ही होता है अवायुकायिक एकेन्द्रिय पृथिवीकायिक आदि जीवों के नहीं होता है। (जाव पज्जत्त सव्वट्ठसिद्ध अणुत्तरोववाइयकप्पाईय वेमाणिय देवपंचिंदिय वेउब्वियसरीरप्पओगबंधे य, अप्पज्जत्त सव्वट्ठसिद्ध अणु શરીર પ્રગબંધ કહ્યો છે તે શું વાયુકાયિક એકેન્દ્રિય જીવોને વક્રિયશરીર પ્રબંધ કહ્યો છે, કે અન્ય એકેન્દ્રિય જીવને વૈકિયશરીર પ્રગબંધ કહ્યો છે? महावीर प्रभुन। उत्तर-एवं एए ण अभिलावेणं जहा ओगाहणा संठाणे वेउब्वियसरीरभेदो तहा भाणियव्वो) 3 गौतम ! म पूरित मनिसाथी શરૂ કરીને પ્રજ્ઞાપના સૂત્રના અવગાહના સંસ્થાન રૂપ ૨૧ એકવીસમા પદમાં વૈક્રિયશરીરના ભેદનું જેવું કથન કરવામાં આવ્યું છે, એ જ પ્રમાણે અહીં પણ તેનું કથન કરવું જોઈએ. જેમ કે-એકેન્દ્રિય વૈક્રિયશરીર પ્રગબંધ વાયુકા યિક એકેન્દ્રિય જી જ કરે છે, પૃથ્વીકાયિક આદિ અવાયુકાયિક એકેન્દ્રિય । ४२ता नथी. (जाव पज्जत्त सव्वदृसिद्ध अणुत्तरोववाइयकल्पाईय वेमाणिय देवपंचिंदियवे उव्वियसरीरप्पओगधे य, अप्पज्जत सव्वदसिद्ध अणुत्तरोववाइ य जाव पओगबंधे य) या सूत्रासुधी त्या ते ४थन ४२पामा व्युं छे. श्री.भगवती सूत्र : ७
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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