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प्रमेयचन्द्रिका टी० श० ८ उ० ८ सू० २ व्यवहारस्वरूपनिरूपणम्
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आगमः स्यात्, आगमेन व्यवहारं प्रस्थापयेत् | नो च तत् तत्र आगमः स्यात्, यथा तस्य तत्र श्रुतं स्यात् श्रुतेन व्यवहारं प्रस्थापयेत् नो वा तस्य तत्र श्रुतं स्यात्, यथा तस्य तत्र आज्ञा स्यात्, आज्ञया व्यवहारं प्रस्थापयेत् | नो च तस्य
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॥ व्यवहार वक्तव्यता ॥
'कइविहे णं भंते ! ववहारे पण्णत्ते' इत्यादि ।
सूत्रार्थ - 'कविहे णं भंते! ववहारे पण्णत्ते' हे भदन्त व्यवहार कितने प्रकार का कहा गया है ? 'गोयमा ' हे गौतम | 'पंचविहे वबहारे पण ते ' व्यवहार पांच प्रकार का कहा गया है ( तं जहा ) जो इस प्रकार से है ' आगमे, सुए, आणा धारणा, जीए' आगमव्यवहार, श्रुतव्यवहार, आज्ञाव्यवहार, धारणाव्यवहार और जीतव्यवहार 'जहा से तत्थ आगमे सिया, आगमेणं ववहार पट्टवेज्जा, णो य से तत्थ आगमे सिया जहा से तत्थ सुए सिया, सुरणं तत्थ ववहारं पडवेज्जा ' इस पांच प्रकार के व्यवहार में जैसा वहां वह आगम हो, उस आगम से वहां व्यवहार चलाना चाहिये यदि वहां पर आगम नहीं हो तो जैसा वहां पर श्रुत हो उस श्रुत से वहाँ पर व्यवहार चलाना चाहिये। ' णो वा से तत्थ सुए सिया, जहा से तत्थ आणा सिया, अणाए बबहारं पट्टवेज्जा, णो य से तत्थ आणा सिया, जहा से तत्थ धारणा सिया,
વ્યવહાર વક્તવ્યતા
कविण भंते! ववहारे पण्णते " इत्याहि
सूत्रार्थ -- (कइविणं भंते ! ववहारे पण्णत्ते १) हे लहन्त ! व्यवहारना डेंटला ukesel ? (mı !) & oilau ! (q'afiq aagıt qunā) ouagıza uja अछे (त जहा) ते प्रहारो नीचे प्रमाणे छे - (आगमे, सुए, आणा, धारणा, जीए) १ भागमव्यवहार, २ श्रुतव्यवहार, ४ भाज्ञानव्यवहार भने पतव्य
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हार ( जहा से तत्थ आगमे सिया, आगमेण ववहारं पट्टवेज्जा, जो य से सत्थ आगमे सिया जहा से तत्थ सुए सिया, खुरणं बवहार' पट्टवेज्जा) मा यांय अारना આગમમાંથી જેવે ત્યાં તે આગમ હોય એવા આગમથી ત્યાં વ્યવહાર ચલાવવા જોઇએ, જે ત્યાં આગમને આશ્રય લઈ શકાય તેમ ન હોય તે જેવું શ્રુત ત્યાં हाथ मेवा श्रुतथी व्यवहार सावने। लेभे ( णो वा से तत्थ सुए सिया, जहा से तत्थ आणासिया, आणाए बवहार पट्टवेज्जा, णो य से तत्थ आणासिया जहा
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭