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________________ प्रमेयचन्द्रिकाश० टी० श०८ उ०८ सू० १ प्रत्यनीकस्वरूपनिरूपणम् १३ गौतमः पृच्छति- अणुकंपं पडुच्च पुच्छा ? ' हे भदन्त ! अनुकम्पां भक्तपानादिभिरनुग्रहं प्रतीत्य आश्रित्य पृच्छा प्रश्नः ? तथा च कियन्तः अनुकम्पा प्रत्यनीकाः अनुकम्पाया विरोधिनः प्रज्ञप्ताः, तानेवाह- तं जहा-तवस्सिपडि. णीए, गिलाणपडिणीए, सेहपडिणीए ' तद्यथा-तपस्विप्रत्यनीकः, ग्लानप्रत्यनीकः, शैक्षप्रत्यनीकः, तत्र तपस्विनः क्षपणकस्य प्रत्यनीकः विरोधी तपस्विमत्यनीकः, ग्लानस्य रोगादिभिरसमर्थस्य प्रत्यनीको-विरोधी ग्लानपत्यनीकः, शैक्षस्य नूतन पत्रजितस्य प्रत्यनीको विरोधी शैक्षप्रत्यनीका उच्यते, तत्र शिक्ष्यते इति शिक्षः, शिक्षएव शैक्षः 'प्रज्ञादित्वात् स्वार्थे अण् नवदीक्षित इत्यर्थः। एतेषां हि-षड्जीवनिकायानाम् अननुकम्पकतया तदकरणाऽकारणाभ्यां च प्रत्यनीकता भवति, गौतमः पृच्छति-मुयं णं भंते ! पडुच्च पुच्छा' हे मदन्त ! श्रुतं खलु प्रतीत्य आश्रित्य पृच्छा ___ अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-(अणुकंपं पडुच्च पुच्छा) हे भदन्त ! भक्त, पान आदि द्वारा अनुग्रह करने रूप अनुकम्पा को आश्रित करके प्रत्यनीक कितने कहे गये है ? अर्थात् अनुकम्पा के विरोधी कितने कहे गये हैं ? उत्तरमें प्रभु कहते हैं-(गोयमा) हे गौतम ! (तओ पडिणीया पण्णत्ता) अनुकम्पा के विरोधी तीन कहे गये हैं 'तं जहा) जो इस प्रकार हैं तवस्सि पडिणीए, गिलाणपडिणीए, सेह पडिणीए' तपस्विप्रत्वनीक, ग्लानप्रत्यनीक, और शैक्षप्रत्यनीक इनमें जो क्षपणक का विरोधी है वह तपस्विप्रत्यनीक है, रोगादि के द्वारा असमर्थ बने हुए का जो विरोधी है वह ग्लानप्रत्यनीक है तथा नूननदीक्षित हुए का जो विरोधी है वह शैक्षप्रत्यनीक है। 'सुयण्णं भंते ! पडुच्च पुच्छा' हे भदन्त ! श्रुत के प्रत्यनीक-विरोधी कितने कहे गये डवे गीतमस्वाभी मनु । प्रत्यी विषे प्रश्न पूछे छ- "अणुकंपं पडुच्च पुच्छा” 8 महन्त ! माडा२, पाणी माहि १२॥ मनुबड ४२११३५ मनुકંપાની અપેક્ષાએ કેટલા પ્રકારના પ્રત્યેનીક કહ્યા છે ? उत्त२-"गोयमा !" गौतम! " तओ पडिणीया पण्णत्ता-त जहा" અનુકંપાના વિરોધીઓ ત્રણ પ્રકારના કહ્યા છે. તે ત્રણે પ્રકારે નીચે પ્રમાણે छे-" तवस्सि पडिणीए, गिलाणपडिणीए, सेहपडिणीए" १ तपस्वी प्रत्यनी લાન પ્રત્યેનીક અને ૩ શૈક્ષપ્રત્યનીક. ક્ષપણુકના જે વિરોધીઓ હોય છે તેમને તપસ્વી પ્રત્યેનીક કહે છે, રેગાદિ દ્વારા શક્તિહીન બનેલા સાધુઓના જે વિરોધીઓ છે તેમને ગ્લાન પ્રત્યેનીક કહે છે. નવદીક્ષિત સાધુના વિરોધીઓને શિક્ષપ્રત્યેનીક કહે છે. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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