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________________ भगवती सूत्रे प' हे गौतम! देश संहननबन्धो यत् खलु शकट-रथ-यान-युग्यगिल्लि थिल्लि - शिविका - स्यन्दमानिका लोही - लोहकटाहकडुच्छुकाऽसन-शयन-स्तम्भ - Prostataणादीनां देशसंहननबन्धः समुत्पद्यते, तत्र युग्यं गोल्लदेशे प्रसिद्धो हस्तद्वयमाणवेदिकायुक्तो जम्पानविशेषः, गिल्लि : - गजपृष्ठास्तपः रणविशेषः, 'अवाडी' इति भाषाप्रसिद्धः, थिल्लिः घोटकद्वययुक्तो यानविशेषः 'वग्गी' इतिभाषाप्रसिद्धः, शिविका - कूटा-कारेणाच्छादितो जम्पान विशेषः, स्यन्दमानिका वा- पुरुषप्रमाणो जम्पानविशेषः, लोही व्यञ्जनपचन भाजन विशेषः, लोहकटाहो भाजन विशेषः, कइच्छुकः दवपदवाच्यः परिवेषणपात्रविशेषः, भाण्डम् मृन्मयभाजनम्, अमत्र' २१२ लोही लोहकडाह कडुच्छय आसणसयण खंभ भंडमत्तो वगरहमाईणं देस संहणणाधे समुपज्जह ) हे गौतम ! शकट, रथ, यान, युग्य, गिल्लि, थिल्ली, शिविका, स्यन्दमानिका, लोही, लोहकटाह, करछी, आसन, शयन, स्तंभ, भाण्ड तथा और भी अनेक प्रकार के जो उपकरणसो इनका जो संबंध होता है वह देशसंहहनन बंध है । गोलदेशप्रसिद्ध, हस्तद्वय प्रमाणवेदिका से युक्त जो जम्पानविशेष है उसका नाम युग्य है, जिसे आज की भाषा में रिक्सागाडी कहते है । अंबाडी का नाम गिल्लि है। दो घोड़ों से युक्तयानविशेषका नाम - जिसे भाषा में 'वग्गी' कहते हैं थिल्लि है । कूटाकार से आच्छादित जम्पानविशेष पुरुषप्रमाण होता है उसका नाम स्यन्दमानिका है । व्यञ्जनको पकानेका जो भाजनविशेष होता है उसका नाम लोही तथा है, लोहकटाह - लोहे की कडाही का नाम है । जिससे दाल आदि पदार्थ परोसे जाते हैं उसका नाम लोहकडाहकडुच्छुयआसणत्रयणखं भभंडमत्तोव गरणमाईणं देससंहणणा ब समुप्पज्जइ ) हे गौतम! शउट ( गाडु ), रथ, यान, युग्य, जिसि, थिडिस, शिणिष्ठा, स्यन्दभानिअ, तावडी, बोड उडाली, अछी, आसन, शयन, स्त ભાંડ તથા ખીજા વિવિધ પ્રકારના ઉપકરણેાના જે સંબધ હેાય છે, તે દેશ સહનન મધ છે. ગાલ દેશપ્રસિદ્ધ, બે હાથ પ્રમાણ વૈશ્વિકાથી યુકત જે वाहनविशेष छे, तेने ( युग्य ) उडे छे, ( लेने डासमा रिक्षा डे छे. (जिसिस) એટલે અખાડી ( થિલ્લિ) એટલે એ ઘેાડા જોડેલી ગાડી અથવા ખગ્ગી, ( શિખિકા ) એટલે પાલખી પુરુષપ્રમાણુ મ્યાનાને સ્વન્દ્વમાનિકા કહે છે (લેહી) શાક વગેરે પકાવવાની તવીને કહે છે, લેાઢાની કડાહીને ( લેાડુ કટાહ ) કહે छे, भेना वडे हा माहि पदार्थ पिरसवामां आवे छे तेने अच्छी (कडुच्छु ) श्री भगवती सूत्र : ৩
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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