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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ८ उ०९ सू० ३ प्रयोगबन्धनिरूपणम् २०१ अन्तर्मुहूर्तम् , उत्कर्षेण संख्येयं कालं तिष्ठति पश्चात् विध्वंसं प्राप्नोति । से तं आलावणबंध' स एष आलापनबन्धः प्रज्ञप्तः। अथ आलीनवन्धमाह-' से किं तं अल्लियावणबंधे ?' हे भदन्त ! अथ कः कतिविधः आलीनबन्धः प्रज्ञतः ? भगवानाह- अल्लियावणबंधे चउनिहे पण्णत्ते' हे गौतम ! आलीनबन्धश्चतुर्विधः प्रज्ञप्तः, 'तं जहा-लेसणाबंधे, उच्चयबंधे, समुच्चयबंधे, साहणणाबंधे' तद्यथाश्लेषणाबन्धः, उच्चयबन्धः, समुच्चयबन्धः संहननबन्धश्व, तत्र 'लेषणा- लेपद्रव्येण द्रव्ययोः संयोजनं, तद्रूयो बन्धा श्लेषणाबन्धः१, एवम् उच्चयः-ऊर्ध्व चयनं राशीकरणं, तद्रूपो बन्धः उच्चयबन्धः२, तथा सं०सङ्गतः उच्चयापेक्षया विशिष्टतरः उच्चयः समुच्चयः, तद्रूपो बन्धः समुच्चयबन्धः३, एवं संहननम्-अवयवानां संघातनं समूह: रहता है । इसके बाद वह नष्ट हो जाता है । ऐसा कथन आलापनबंध के विषय में तीर्थकरादिकों ने किया है। अब आलीनबन्ध का क्या स्वरूप है इस विषय में गौतमस्वामी प्रभु से पूछते हैं-' से किं तं अल्लियावणबंधे' हे भदन्त ! आलीनबंध कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहने हैं-' अल्लियावणबंधे चउविहे पण्णत्ते ' हे गौतम ! आलीनबंध चार प्रकार का कहा गया है-' तं जहा' जैसे- लेसणाबंधे, उच्चयबंधे, समुच्चयबंधे, साहणणाबंधे' श्लेषणाबंध, समुच्चयबंध और संहननयंध दो द्रव्यों का आपसमें किसी श्लेषपदार्थ से जोड़ना इसका नाम इलेषणाध है,राशी करनेरूप जो बंध होता है वह उच्चयबंध है । उच्चय की अपेक्षा जो विशिष्टतर उच्चय है वह समुच्चयबंध है । अवयवों का जो समूह है वह संहननबंध है । अर्थात् अवयवों ३भां पधारे सभ्यात ४१ सुधा २ छे. त्या२ मा नाश पामे छ. ( से सं आलावणबधे) मे ४थन मापन अ५ विष तीथ हिजो . गोतमस्वाभाना प्रश्न-(से कि तं अल्लियावणबधे ?) 8 महन्त ! આલીનબંધનું સ્વરૂપ કેવું છે? महावीर प्रभुने। उत्तर-(अल्लियावण बधे चउठिवहे पण्णत्ते ) 3 गौतम ! मानधना यार ४०२ . (तजहा) ते प्राशनी नीय प्रमाणे छे-(लेसणाबंधे, उच्चयब धे, समुच्चयबधे साहणणाबधे, ) (१) मध, (२) २ययम' (3) समुध्ययमय भने (४) सननन. બે પદાર્થોને એક બીજાની સાથે કોઈ લેષ પદાર્થ વડે જોડાવે તેનું નામ શ્લેષણ બંધ છે. રાશી (ઢગલે) કરવા રૂપ જે બંધ થાય છે તેનું નામ ઉચ્ચય બંધ છે. ઉચ્ચયના કરતાં પણ વિશિષ્ટતર જે ઉચ્ચય છે તેનું નામ श्री भगवती सूत्र : ७
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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