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________________ A १९८ भगवतीसरे आयुष्कं च प्रतीत्य मनुष्यपश्चेन्द्रियौदारिकशरीरपयोगनाम्नः कर्मण उदयेन मनुष्य पञ्चेन्द्रियौदारिकशरीरप्रयोगबन्धः ॥ सू० ३॥ टीका-'से किं तं पओगबंधे ? ' गौतमः पृच्छति -- हे भदन्त ! अथ कः कतिविधः स प्रयोगबन्धः प्रज्ञप्तः ? भगवानाह-'पओगबंधे तिविहे पण्णत्ते ' हे गौतम ! प्रयोगबन्धस्त्रिविधः प्रज्ञप्तः ' तं जहा--अणाइए वा अपज्जवसिए, साइए वा अपज्जवसिए, साइए वा सपज्जवसिए ' तद्यथा मणुस्सपंचिंदियओरालियसरीरप्पओगनामकम्मरस उदएणं मणुस्स पंचिंदियसरीरप्पओगबंधे ) जीव की वीर्यता, सयोगता, सद्रव्यता, प्रमादरूपहेतु-इनसे कर्म, योग, भव एवं आयुष्क को लेकर के मनुज्यपंचेन्द्रिय औदारिक शरीरप्रयोग नामकर्म के उदय से मनुष्यपंचेन्द्रिय औदारिक शरीरप्रयोग बंध होता है। टीकार्थ-मूची कटाह न्याय से पश्चात् पठित भी विस्रसाबंध का प्ररूपण करके सूत्रकार अब प्रयोगषन्ध की प्ररूपणा कर रहे हैं-इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है-'से कि तं पओगबंधे-पओगबंधे तिविहे पण्णत्ते' हे भदन्त ! प्रयोगवन्ध कि जिसका स्वरूप विस्रसाबंध से भिन्न है क्या है-अर्थात्-प्रयोगबंध कितने प्रकार का है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-हे गौतम ! प्रयोगबन्ध तीन प्रकार का है-' तं जहा' जो इस तरह से है-'अणाइए वा अपजवसिए, साइए वा अपजवसिए, साइए आउयं च पडुश्च मणुस्सपचि दिय ओरालिय सरीरप्पओग नामकम्मस्स उदएर्ण मणुस्स पचि दिय ओरालिय सरीरप्पओगब'धे ) पनी वीयता, सयासता, સદ્રવ્યતા, અને પ્રમાદરૂપ કારણથી કર્મ, વેગ, ભવ અને આયુષ્કને આશ્રિત કરીને મનુષ્ય પંચેન્દ્રિય દારિક શરીર પ્રગ નામ કમના ઉદયથી મનુષ્ય પંચેન્દ્રિય ઔદારિક શરીર પ્રગ બંધ થાય છે. ટીકાર્યક્રમ પ્રમાણે ગણતા પ્રાગબંધની પ્રરૂપણા પહેલાં થવી જોઈતી હતી, પરંતુ “સૂચી કટાહ ન્યાયને અનુસરીને પશ્ચાત્ પતિ વિસ્ત્રસા બંધની પ્રરૂપણ પહેલા કરવામાં આવી છે. હવે સૂત્રકાર પ્રાગબંધની નીચેના પ્રશ્નોत्तरे। २॥ ५३५५॥ ४२ छ गौतम स्वामीना प्रश्न-से कि त पओगवघे १) महन्त ! विख. સાબંધથી ભિન્ન એવા પ્રગ બંધનું સ્વરૂપ કેવું છે? એટલે કે પ્રયોગબંધના કેટલા પ્રકાર છે? महावीर प्रसुना उत्तर-(पओगधे तिविहे पण्णते-तजहा) गीतम! प्रयासमधन नीय प्रमाणे तर २ छ-(अणाइए वा अपज्जवसिए, साइए वा શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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