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भगवतीसरे प्रमादप्रत्ययात्, कर्मयोगश्च भवच आयुष्कश्च पतीत्य व औदारिकशरीरप्रयोगनाम कर्मण उदयेन औदारिकशरीरपयोगबन्धः । एकेन्द्रियौदारिकशरीरप्रयोगबन्धः खलु भदन्त ! कस्य कर्मण उदयेन ! एवमेव, पृथिवीकायिकैकेन्द्रियौदारिकशरीरप्रयोगबन्धः एवमेव, एवं यावत् वनस्पतिकायिकाः, एवं द्वीन्द्रियाः, एवं त्रीन्द्रियाः, एवं चतुरिन्द्रियतिर्यग्योनिकौदारिकशरीरमयोगबन्धः, एवमेव पञ्चेन्द्रियौदारिकशरीरप्र. हे गौतम ! (वीरियसजोगसहव्वयाए पमादपच्चया कम्मं च जोगं च भवं च आउयं च पडुच्च ओरालियसरीरप्पओगनामकम्मस्स उदएणं ओरालियसरीरप्पभोगबंधे ) जीव की सबीर्यता, सयोगता, सद्रव्यता से प्रमादरूप कारण से, कर्म, योग, भव, और आयुष्क को आश्रित करके औदारिकशरीरप्रयोग नाम कर्म के उदय से औदारिक शरीरप्रयोगबंध होता है। (एगिदिय ओरालियसरीरप्पओग बंधे णं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं ) हे भदन्त ! एकेन्द्रिय औदारिक शरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? (एवं चेव ) हे गौतम ! इसी तरह से होता है। (पुढविवाइयएगिदिय ओरालियसरीरप्पोगबंधे एवं चेव) पृथिवीकायिक एकेन्द्रिय औदारिकशरीरप्रयोगबंध भी इसी तरह से होता है। ( एवं जाव वणस्सइकाइया, एवं बेइंदिया, एवं तेइंदिया, एवं चउरिदिया-तिरिक्खजोणियपंचिंदियओरालियसरीरप्पभोगधंधे एवं चेव) यावत् वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय औदारिकशरीरप्रयोगबंध, तथा दीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चौइन्द्रिय तियंचयोनिक पञ्चेन्द्रिय औदारिक
(गोयमा ! ) 3 गौतम ! (बोरियखजोग, सहब्बयाए पमादपच्चया कम्मं च जोगं च भवं च पाउयं च पडुच्च ओरालिय सरीरप्पओग नाम कम्मरस उदएणं ओरालियसरीरओग बधे ) पनी सवीता, सायाता, सद्रव्यताथी, अमाह રૂપ કારણથી, કર્મ, ગ, ભવ અને આયુષ્યને આશ્રિત કરીને દારિક શરીર प्रयो नाम भना यथी मोहरि शरीर प्रयास ५५ थाय छे. ( एगिदिय ओरालिय सरीरप्पओग बघेणं भवे ! कस्स कम्मरस उदएणं ?) महन्त ! . ન્દ્રિય ઔદારિક શરીર પ્રયોગ બંધ કયા કર્મના ઉદયથી થાય છે?
( एवं चेव) 3 गौतम ! मोहार शरी२प्रयोग ५२वी शत थाय छ तवी Na or l म थाय छे. ( पुढविकाइय एगिदिय ओरालिय सरीर. प्पओगब'धे एवं चेव) यि मेन्द्रिय मोहोरिs शरी२ प्रयोग सध पy मे शत थाय छे. ( एवं जाव वणस्सइकाइया, एवं वेइंदिया, एवं तेइदिया, एवं चउर दिया, तिरिक्खजोणियपचि दियओरालियसरीरप्पओगधे एवं चेव) वनस्पतिथिपतन सेन्द्रियोहार शरीर प्रयोग ,
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭