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________________ भगवतीस्त्र ____टीका-वीससाबंधेणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते?' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! वित्रसाबन्धः बिस्रसया स्वभावेन सम्पन्नो बन्धः विस्रसाबन्धः खलु कतिविधः प्रज्ञप्तः ? भगवानाह-'गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते ' हे गौतम ! विस्र साबन्धो द्विविधा प्रज्ञप्तः, 'तं जहा-साइएविससावन्धे, अणाइए वीससावधे य' तद्यथा-सादिकः विस्रसाबन्धः, अनादिकः विस्रसाबन्धश्च, तत्र आदिना सहितः सादिको विस्रसाबन्धो व्यपदिश्यते, आदिना रहितोऽनादिको विस्रसावन्ध उच्यते, गौतमः पृच्छति टीकार्थ-यथासंख्यन्याय को आश्रय करके सूत्रकार को प्रथमप्राप्त प्रयोगबंध का कथन करना चाहिये था-पर ऐसा न करके जो सूत्रकार ने पश्चात् पठित भी विस्रसा बंध का कथन किया है वह सूचीकटाहन्याय को आश्रित करके किया है। इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है(वीससा बंधे णं भंते ! काबिहे पण्णत्ते ) हे भदन्त ! विरसायंध कितने प्रकार का कहा गया है ? जो बन्ध स्वभाव से होता है-वह वित्रसाबंध है। इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम ! ( दुविहे पण्णत्ते) विस्त्रसाबंध दो प्रकार का कहा गया है (तं जहा) जो इस प्रकार से हैं-(साइयविससाबधे, अणाइयविससायंधे य ) एक सादिक विस्रसाबध और दूसरा अनादिक विस्त्रसाबंध जो स्वाभाविक बंध विस्त्रसाबंध आदिसहित होता है-वह सादिकविस्त्रसाबंध है। प्रारंभरहित जो बंध है-वह अनादिकविरसा बंध है। अब गौतमस्वामी ટીકાWયથાસંખ્ય ન્યાયનો આશ્રય લઈને સૂત્રકારે પહેલાં પ્રયોગબંધનું નિરૂપણ કરવું જોઈતું હતું પણ એવું ન કરતાં સૂત્રકારે જે વિસસાબંધનું નિરૂપણ કર્યું છે તે સૂચકટાહ ન્યાયને આશ્રિત કરીને કરવામાં આવ્યું છે. તેમાં ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને એ પ્રશ્ન પૂછે છે કે (वीससावधेणं भते ! कइ विहे पत्ते ? ) 3 महन्त ! विखसा मय કેટલા પ્રકારને કહ્યો છે ? (જે બધ સ્વભાવથી થાય છે, તે બંધને વિશ્વસા બંધ કહે છે ) महावीर प्रभुने। उत्त२-गोयमा !” गौतम ! (दुविहे पण्णत्ते ) विश्वसामना २ ५४.२ ४ा छ. “ त जहा" ते ५४.२। नीय प्रमाणे छ( साइय विससाबधे, अणा इयविससा बधे य ) (१) साहि विखसा मध અને (૨) અનાદિક વિસસા બંધ. જે સ્વાભાવિક બંધ ( વિસસા બંધ) આદિ સહિત હોય છે, તેને સાદિક વિસા બંધ કહે છે. પ્રારંભ રહિત જે બંધ છે તેને અનાદિક વિસસા બંધ કહે છે. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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