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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी० ७ ० ६ ३०५ स० ६ सूर्यनिरूपणम् १५१ योजनस्य तिर्यक् तापयतः, एतच्चसर्वोत्कृष्टदिवसे चक्षुःस्पर्शापेक्षयाऽवसे यम् , अथ मूर्यवक्तव्यवतानिरूपणानन्तरं सामान्येन ज्योतिष्कवक्तव्यतां प्ररूपयति —' अंतो गं भंते ! माणुसुत्तरस्स पव्वयस्स जे चंदिसमरियगहगणणक्खत्ततारारुवा, ते णं भंते ! देवा किं उड्रोववन्नगा ? ' हे भदन्त ! मानुषोत्तरस्य मनुष्यलोकसीमाकारकस्य पर्वतस्य अन्तः अभ्यन्तरे ये चन्द्रग्रहगणनक्षत्रतरारूपादेवाः सन्ति हे भदन्ता ते खलु देवाः किम् अर्को पपन्नकाः ? ऊर्ध्वलोकोत्पना भवन्ति ? भगवानाह-'जहा जीवाभिगमे तहेव निरवसेसं जाव उक्कोअपने विमान के ऊपर एक सौ योजन प्रमाण ही तापक्षेत्र है अतः ऊपर में सूर्य का तापक्षेत्र एक सौ योजन प्रमाण कहा गया है। सूर्य से आठ सौ योजनतक नीचे में भूतल है-भूतल से एक हजार योजन में अधोलोकग्राम हैं। इन सब को उद्योतित करने से यहां नीचे में सूर्य का तापक्षेत्र १८ सौ योजन प्रमाण कहा गया है । तथा जो तिरछे में सूर्य का तापक्षेत्र कहा गया है वह सर्वोत्कृष्ट दिवसमे चक्षुः स्पर्श की अपेक्षा से कहा गया है। अब सूर्यविषयक वक्तव्यता के निरूपण के अनन्तर सूत्रकार सामान्य रूप से ज्योतिष्कों की वक्तव्यता की प्ररूपणा करते हैं-इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा हैं -(अंतोणं भंते ! माणुसुत्तरस्स पव्वयस्स जे चंदिम सूरिय-गहगण-णक्खत्त-ताराख्वा, तेणं भंते ! देवा किं उड्रोववन्नगा) मानुषोत्तर पर्वत के जो चन्द्र, सूर्य ग्रहगण, नक्षत्र और तारारूप देव हैं-हे भदन्त ! वे देव क्या उर्वलोकमें उत्पन्न हुए हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-(जहा जीवाभिगमे तहेव તેથી ઉપર સૂર્યનું તાપક્ષેત્ર ૧૦૦ જન પ્રમાણ કહેવામાં આવ્યું છે. સૂર્યથી આઠ જન સુધી નીચે ભૂતલ છે અને ભૂતલથી ૧૦૦ જન નીચે અધો. લેકગ્રામ છે. સૂર્ય તે બનેને ઉદ્યોતિત કરે છે. તેથી તેમનું તાપક્ષેત્ર નીચે ૧૮૦૦ એજન પ્રમાણ કહ્યું છે. તથા સૂર્યનું જે તિરછું તાપક્ષેત્ર કહ્યું છે, તે સર્વોત્કૃષ્ટ દિવસમાં ચક્ષુ પર્શની અપેક્ષાએ કહ્યું છે. આ રીતે સૂર્યની વક્તવ્યતાનું નિરૂપણ કરીને હવે સૂત્રકાર તિષિકની પ્રરૂપણ કરે છે. આ વિષયને मनुसक्षीन गौतम स्वामी महावीर प्रभुने नीय प्रमाणे प्रश्न पूछे छे–“अतोणं भंते ! माणुसुत्तरस्स पव्वयस्स जे चदिम सूरिय-हगण-णक्ख त-तारारूवा; तेणं भंते ! देवा किं उड्ढोववन्नगा १) महन्त ! भानुषोत्त२ ५ तन। २ यन्द्र, સુર્ય, ગ્રહણ, નક્ષત્ર અને તારારૂપ દેવે છે, તેઓ શું ઉર્વલોકમાં ઉત્પન્ન થયેલા છે? શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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