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________________ भगवतीस्त्र यावत् उत्कर्षेण षड् मासाः, बाह्याः खलु भदन्त ! मानुष्योत्तरस्य० यथा जीवाभि. गमे यावत् इन्द्रस्थानम् खलु भदन्त ! कियन्तं कालम् उपपातेन विरहितं प्रज्ञप्तम्? गौतम ! जघन्येन एकं समयम् उत्कर्षेण षड् मासाः। तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति ॥ मू० ६॥ ____ अष्टमशतके अष्टमउद्देशकः समाप्तः ॥ ८-८ ॥ चन्द्रमा, सूर्य, ग्रहगण, नक्षत्र और तारारूप देव हैं-वे क्या हे भदन्त ! ऊर्ध्वलोक में उत्पन्न हुए हैं ? (जहा जीवाभिगमे तहेव निरवसेसं जाव उकोसेणं छम्मासा) हे गौतम ! इस विषय में जैसा जीवाभिगम सूत्र में "इनका उपपातविरहकाल एक समय जघन्य से है और यावत् उस्कृष्ट ६ मास है" यहां तक कहा है वैसा ही यहां पर भी जानना चाहिये। (बहिया णं भंते ! माणुसुत्तरस्स) हे भदन्त ! मानुषोत्तरपर्वत के बाहर जो चंद्रमा आदि देव हैं वे क्या उर्ध्वलोक में उत्पन्न हुए हैं ? (जहा जीवाभिगमे-जाव इंदट्ठाणे णं भंते ! केवइयं कालं उववाएणं विरहिए पण्णत्ते ? ) हे गौतम ! जैसा जीवाभिगमसूत्र में कहा है वैसा जानना चाहिये । यावत् हे भदन्त ! इन्द्रस्थान कितने कालतक उपपात से विरह युक्त कहागया है ? (गोयमा ! जहन्नेणं एक समयं, उक्कोसेणं छम्मासा सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति) हे गौतम ! इन्द्रस्थान जघन्य से एक समय तक और उत्कृष्ट से ६ मासतक उपपात से विरहित कहा અંદર જે ચન્દ્રમા, સૂર્ય, ગ્રહણ, નક્ષત્ર અને તારારૂપ દેવો છે, તે શું ઉર્વલોકમાં ઉત્પન્ન થયેલા છે? (जहा जीवाभिगमे तहेव निरवसेसं जाव उकोसेणं छम्मासा) गौतम ! આ વિષયને અનુલક્ષીને જીવાભિગમ સૂત્રમાં જે કથન કરવામાં આવ્યું છે તે સમસ્ત કથન “તેમને ઉત્પાત વિરહકાલ ઓછામાં ઓછો એક સમય છે અને વધારેમાં વધારે ૬ માસને છે. ” આ કથન પર્યન્ત ગ્રહણ કરવું. (बहिया णं भंते ! माणुसुत्तरस्स) हे महन्त ! मानुषोत्त२ ५६तनी महार २ मा मालियो छ, तया | Saawi sपन्न थयेा छ ? ( जहा जीवाभिगमे-जाव इंदट्ठाणेणं भंते ! केवइयं कालं उवाएणं विरहिए पण्णत्ते ? ) હે ગૌતમ! આ વિષયને અનુલક્ષીને જેવું કથન જીવાભિગમ સૂત્રમાં કરવામાં माथु छ, तमही घड ४२, ( यावत् ) "3 भदन्त ! धन्द्रस्थान डेटा કાળ સુધી ઉપપાતથી વિરહયુક્ત કહ્યું છે?” गोयमा !) गौतम ! ( जहन्नेणं एक समय', उक्कोसेणं छम्मासासेव भते! सेव भंते ! त्ति) छन्द्रस्थान माछामा माछु मे समय सुधी શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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