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________________ street टीका ० ८ उ०८ सू० ५ कर्म प्रकृति-परीषवर्णनम् ११५ 9 त्वात् भयमोहनीये उपसर्गवाधा भयापेक्षया नैषेधिकीपरीषदः, मानमोहनीये तद् दुष्करत्वापेक्षया याचनापरीषदः समवतरति, मानमोहनीये मदोत्पच्यपेक्षया सत्कारपुरस्कारपरीषदः समवतरति । सर्वेऽपि एते सप्त सामान्यतचारित्रमोहनीये समवतरन्ति । गौतमः पृच्छति - ' अंतराइए णं भंते ! कम्मे कई परीसहा समोयरंति ? I , 1 भदन्त ! आन्तरायिके खलु कर्मणि विषये कति परीषदाः समवतरन्ति ? भगवानाह - ' गोयमा ! एगे अलाभपरीसहे समोयर ' हे गौतम! अन्तराये कर्मणि एक: अलाभपरीषद एवं समवतरति, अन्तरायचात्र लाभान्तरायरूपो विज्ञेयः तदुदये वह स्त्री आदि की अभिलाषा रूप होता है, नैषेधि की परीषह उपसर्ग बाधा और भय की अपेक्षा से भयमोहनीय में, याचनापरीषह दुष्करत्व की अपेक्षा से मानमोहनीय में समाविष्ट होते हैं । क्रोधेात्पत्ति की अपेक्षा से आक्रोशपरीषह क्रोधमोहनीय में, मदोत्पत्ति की अपेक्षा से सत्कार पुरस्कार परीषह मानमोहनीय में समाविष्ट होते हैं। इस प्रकार ये सात परीषह सामान्यरूप से चारित्रमोहनीय में समाविष्ट होते हैं । अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं ( अंतराइए णं भंते! कम्मे कह परीसहा समोयरंति) हे भदन्त ! अन्तरायिक कर्म में कितने परीषहों का समावेश होता है ? उत्तर में प्रभुकहते हैं (गोयमा ) हे गौतम ! (एंगे अलाभपरीस हे समोयरह ) अन्तराय कर्म में एक अलाभपरीषह का समाविष्ट होता है। यहां अन्तराय से लाभान्तरायरूप जानना चाहिये क्यों कि लाभान्तराय के उदय में ही लाभ का अभाव होता है। इस રૂપ હાય છે. નૈષધિકી પરીષહના સમાવેશ ઉપસ, માધા અને ભયની અપેક્ષાએ ભયમેહનીયમાં થાય છે. યાચના પરિષદ્ધના દુષ્કરત્વની અપેક્ષાએ માનમેાહનીયમાં સમાવેશ થાય છે. ક્રોધાત્પત્તિની અપેક્ષાએ આક્રોશ પરીષહને માનમાહનીયમાં અને મદોત્પત્તિની અપેક્ષાએ સત્કાર પુરસ્કાર પરિષના પણ માનમાહનીયમાં સમાવેશ થાય છે. આ પ્રમાણે સાત પરિષšાને સમાવેશ સામાન્ય રીતે ચારિત્ર માહનીયમાં થાય છે. " गौतम स्वाभीनो प्रश्न - " अंतराइए णं भंते ! कम्मे कइ परीसहा समोयति ? ” हे लहन्त ! अंतराय उभा डेटा परीषहोना समावेश थाय छे ? तेन। उत्तर आयता महावीर प्रभु छे " गोयमा ! " हे गौतम! ( एगे अलाभपरिसहे समोयरइ ) अन्तराय मां मेड सवाल परीषहना ४ સમાવેશ થાય છે. અહીં અન્તરાયને લાભાન્તરરાય રૂપ સમજવો. કારણ કે લાભાન્તરાયના ઉદય વખતે જ લાભના અભાવ રહે છે. આ પરીષહ સવો તે ચારિત્ર માહનીયના ક્ષયેાપશમ રૂપ હોય છે. श्री भगवती सूत्र : ৩
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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