SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 736
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - ७२४ भगवतीमत्रे एवम् एष यथा प्रथमो दण्डकस्तथा अयमपि अपरिशेषो भणितव्यो यावत् वैमानिकः, नवरं मनुष्यो यथा जीवः, जीवाः खलु भदन्त ! औदारिकशरीरात् कति मणुस्से जहा जीवे ) हे गौतम ! एक असुरकुमार देव कदाचित् तीन क्रियाओंवाला, कदाचित् चार क्रियाओंवाला और कदाचित् पांच क्रियाओंवाला होता है- इस तरहसे पूर्वकी तरह कथन जानना चाहिये। इसी प्रकारसे यावत् वैमानिक देव भी तीन चार आदि क्रियाओंवाले होते हैं ऐसा जानना चाहिये। मनुष्योंको जीवोंकी तरहसे जानना चाहिये । ( जीवे णें भंते ! ओरालियसरीरेहिंतो कह किरिए ) हे भदन्त ! एक जीव परकीय औदारिक शरीरोंके आश्रयसे कितनी क्रियाओंवाला होता है ? (गोयमा ? सिय तिकिरिए जाव सिय अकिरिए) हे गौतम जीव परकीय औदारिक शरीर के आश्रय से कदाचित् तीन क्रियावाला होता है यावत् कदाचित् अक्रिय होता है (नेरयिएण भंते ! ओरालियसरीरेहिंता कह किरिए) हे भदन्त ! नैरयिक औदारिक शरीरों के आश्रय से कितनी क्रियावाला होता है ? ( एवं एसो जहा पढमो दंडओ तहा इमो वि अपरिसेसो भाणियन्वो जाव वेमाणिए नवरं मणुम्से जहा जीवे) हे गौतम! एक जीव परकीय औदारिक शरीरोंके आश्रयसे कभी तीन क्रियाओंवाला होता है, कभी चार कियाओंवाला होता है. अभी गंच क्रियाओंवाला होता है और कभी विना क्रिया के वमाणिए-नवरं मणुस्से जहा जीवे) गौतम ! मे असुरमा२ व या२४ ત્રણ ક્રિયાઓવાળા, કયારેક ચાર કિયાએવાળે અને કયારેક પાંચ ક્રિયાઓવાળા હોય છે. આ રીતે આગળ મુજબનું કથન જ અહીં સમજવું. એજ પ્રમાણે વૈમાનિક પર્યાતના દેવે પણ ત્રણ, ચાર અને પાંચ ક્રિયાઓવાળા હોય છે, એવું સમજવું પણ મનુષ્યના विषयमा वाना gr ४यन समg. (जीवे णं भंते ! ओरालियसरीरेहितो कइकिरिए?) हे महन्त! मे १ ५२ीय मोहा२ि४ शरीरना माश्यथी क्षी लियामावाणे होय छ ? (गोयमा ! सिय तिकिरिए जाव सिय अकिरिए) હે ગૌતમ જીવ પરકીય દારિક શરીરના આશ્રયથી કેટલી વાર ત્રણ ક્રિયવાળે હેાય છે. यावत् मठिय हाय छे. (नेराडेएणं भंते ओरालिय सरीरेहिंतो कइ किरिए ?) હે ભદન્ત નૈરયિક પરકીય ઔદારિક શરીરના આશયથી કેટલી ક્રિયાવાળા હોય છે ? ( एवं एसो जहा पढमो दंडओ, तहा इमो वि अपरिसेसो भाणियव्यो जाव वेमाणिए, नवरं मणस्से जहा जीवे) गोतम ! मे ७१ ५२४ी4 ઔદારિક શરીરના આશ્રયથી કયારેક ત્રણ ક્રિયાઓવાળ હોય છે, કયારેક ચાર ક્રિયાઓવાળા હોય છે, ક્યારેક પાંચ ક્રિયાઓવાળા હોય છે અને કયારેક ક્રિયા રહિત श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy