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भगवतीमत्रे छादनं ध्मायति, ज्योतिः ध्मायति, गौतम ! नो आगारं ध्मायति, नो कुड्यानि ध्मायति, यावत् नो छादनं ध्मायति, ज्योतिः ध्मायति ॥ मू० ४ ॥
टीका - आराधक प्रस्तावात तस्य च प्रदीपवद् दीप्यमानत्वेन प्रदीपस्वरूपं प्ररूपयितुमाह-'पईवस्स णं भंते' इत्यादि । 'पईवस्स णं भंते ! झियायमाणस्स किं पइवे झियाइ, लठी झियाइ वत्ती ज्ञियाइ, तेल्ले झियाइ, दावचंपए झियाइ, जोइ झियाइ ?' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! प्रदीपम्य झियाइ, छाणे झियाइ, जोइ झियाइ ) हे भदन्त ! जलते हुए घर में क्या जलता है ? क्या घर जलता है ? या भीते जलती है ? या टटियां जलती हैं ? या खम्मे जलते है ? या मोभ काष्ठ जलता है ? या वांस जलते हैं ? या मल्ल-भोतोंके आधारभूत खम्मे जलते है ? या घरके ऊपरकी लकडियां - जलती हैं? या छप्पर जलता है ? या ज्योति-अग्नि जलती है ? (गोयमा) हे गौतम ! ( नो अगारे झियाइ, नो कुहुँ। झियाइ, जाव नो छाणे झियाइ, जोइ झियाह) न घर जलता है, न भींते जलती हैं, यावत् न छप्पर जलता है, किन्तु ज्योति-अग्नि जलती है।
टीकार्थ- यहां आराधकका विषय चल रहा है। आराधक जो होता है वह प्रदीपकी तरह चमकता है इसलिये सूत्रकारने यहां प्रदीपका स्वरूप प्ररूपित किया है-इस में गौतमने प्रभुसे ऐसा पूछा है- 'पईवस्स णं भंते ! झियायमाणस्स किं पईवे झियाइ, लट्ठी झियाइ, छाणे झियाइ, जोइ झियाइ) हे महन्त ! साता घमां शुमने छ ! શું ઘર બળે છે કે દીવાલ બળે છે? કે વાછટિયાં બળે છે ? કે થાંભલા બળે છે કે મે બળે છે? કે વાંસ બળે છે? કે દીવાલના આધારભૂત સ્થંભે બળે છે? કે વળીએ मजे छ ? छ।५३ मणे छ ? ज्योति ( मनि) मजे छ? (गोयमा) गौतम ! (ना अगारे झियाइ, नो कुड्डा झियाइ जाव नो छाणे झियाइ, जोइ झियाइ) ઘર મળતું નથી, દીવાલો બળતી નથી, અને છાપરા પર્યન્તની ચીજો બળતી નથી, न्याती (म1ि) सणे छे.
ટકાથ:- આરાધકને અધિકાર ચાલી રહ્યો છે આરાધક પ્રદીપ (દીવા) ની જેમ ચળકે છે. તેથી સરકારે અહીં પ્રદીપ (દીપક) ના સ્વરૂપનું નિરૂપણ કર્યું છે. આ વિષયને मनुक्षीन गौतम २वामी महावीर प्रभुने थे। प्रश्न पूछे छे - 'पईवस्स णं भंते ! झियायमाणस्स कि पईवे झियाइ, लट्ठी झियाइ, बत्ती झियाइ, तेल्ले झियाइ, दीपचपए शिकाइ, जोइ झियाइ ?) Batra! «it होवो ममता होय,
श्री. भगवती सूत्र :