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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ. ६ . ४ दीपस्वरूपनिरूपणम्
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धमायति ? गौतम ! नो प्रदीपो ध्मायति, यावत् नो प्रदीपचम्पकं ध्मायति, ज्योतिः ध्मायति; आगारस्य खलु भदन्त ! ध्मायतः किम् आगारं ध्मायति, कूडयानि ध्मायति कडनानि ध्मायति धारणे घ्मायतः, बलहरणं ध्मायति, वंशाः धमायन्ति, मल्लाः ध्मायन्ति, वल्का धमायन्ति, छित्वराणि ध्मायन्तिः दीप स्वरूप वक्तव्यता
या
वह
झियाइ ) या
पईवस्स णं भंते ! झियायमाणस्स किं पड़वे ' इत्यादि । सूत्रार्थ (पईवस्स णं भंते । झियायमाणस्स किं पईवे झियाइ ) हे भदन्त ! जलते हुए दीपक में क्या जलता है ? क्या दीपक जलता है ? ( लट्ठी झियाइ ) दीपक की यष्टि जिस यष्टि पर दीवा रखा जाता है जलती है ? ( बत्ती झियाइ ) अर्थात् बत्ती जलती है ? ( तेल्ले तेल जलता ? ( दीपचंए झियाइ ) या दीपकका आधारभूत पात्र जलता है ? (जोई झीयाह ) या ज्योति अग्नि-जलती है ? ( गोयमा !) हे गौतम! (नो पहवे झियाह जाव नो पहवचंपए झियाइ जोइ झियाइ ) प्रदीप नहीं जलता है - यावत् प्रदीपका आधारभूत पात्र नहीं जलता है, किन्तुज्योती- अग्नि जलती है । ( अगारस्स णं भंते ! झियायमाणस्स किं अगारे झियाइ, कुड्डा झियाइ, कडणा झियाह, धारणा झियाइ बल हरणे झियाइ, बंसा झियाइ, मल्ला झियाइ, बग्गा झियाइ छित्तरा દીપ સ્વરૂપ વકતવ્યતા
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पईवस्सणं भंते! झियायमाणस्स कि पइवे शियाइ ' उत्पादिसूत्रार्थ :- (पईवस्सणं भंते ! झियायमाणस्स कि पड़वे शियाई) के महन्त भणता हीयम्भां शुं भजे छे ! शुं ही यह जजे हो ? ( लट्ठी झियाइ) ट्ठे डीवानी वाट म छे ? (बत्ति ज्ञियाइ) यत्ति भने छे ? (तेल्ले झियाइ ) } तेस जजे हे ? ( दीवचंप झियाइ) द्वीपउनु आधारभूत पात्र भने हो ? ( जोई झियाइ) न्योती (अग्नि) मजे छे ! ( गोयमा !) हे गौतम! (नो पइवे झियाइ जाब नो पइवचंपए झियाइ - जोइ झियाई) अद्वीय अणतो नथी, अहीयना आधारभूत यात्र पर्यन्तनी आई षा, वस्तु भजती नथी, परन्तु ज्योति (अग्नि) ४ जणे छे. ( अगारस्स णं भंते ! झियायमाणस्स किं अगारे शियाई, कुड्डा झियाइ, कडणा झियाइ, धारणा शियाई, बलहरणे झियाइ, बंसा झियाइ, मल्ला शिवाह, बग्गा शियार, छिचग
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૬