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________________ ७०२ भगवतीसगे भगवानाह- 'गोयमा ! राहए, नो विराहए' हे गौतम ! स निग्रन्थः आराधको भवति, नो विराधको भवति, ४. उक्तश्च- 'आलोचणा परिणओ, सम्मं संपढिओ गुरुसगासे जेइमरइ अंतरेचिय, तहाचि सुद्धो ति भावाओ ॥ १ ॥ छाया- आलोचना परिणतः, सम्यक् सपस्थितः गुरुसकाशे, यदि म्रियते अन्तरे चेव, तथापि शुद्ध इति भावतः ॥१॥ गौतम : पृच्छति- 'सेय संपढिए संपत्ते थेराय अमुहा सिया' सच निर्ग्रन्थः संप्रस्थितः प्रस्थानं कृतवान् अथच सप्राप्तः स्थविरप्रदेशं गतः, किन्तु स्थविराश्च यदि अमुखाः मूकाः स्युः वचनरहिता भवेयुः तदा ‘से णं भंते ! कि आराहए, विराहए ? ?' हे भदन्त ! स खलु निग्रन्थः किम् कहते हैं- 'गोयमा' हे गौतम ! ‘आराहए नो विराहए' वह निर्ग्रन्थ श्रमण आराधक है, विराधक नहीं है । ४ ।। कहा भी है- आलोयणा परिणओ । इत्यादि तात्पर्य कहनेका यह है कि अच्छी तरहसे आलोचनादि करने में परिणत हुआ आत्मा आलोचना करनेके लिये गुरुके पास जाता है परन्तु यदि वह बीच में कारणवश मरणको प्राप्त होजावे तो ऐसी स्थिति में वह भावकी अपेक्षा शुद्ध आराधकही माना गया है-विराधक नहीं । ____ अब गौतम स्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं- ‘सेय संपढिए संपत्ते थेराय अमुहा सिया' वह निर्ग्रन्थ श्रमण उम स्थानसे चल देता है जहां स्थविर होते हैं. वहां आभी जाता है परन्तु यदि वे स्थविर मृक हो जाते हैं - वचन बोलने में असमर्थ बन जाते हैं तो 'सेणं भंते ! किं आराहए विराहए' हे भदन्त ! वह निर्ग्रन्थ ___उत्तर :- 'गोयमा ! आराहए नो विराहए ?' गौतम ! ते श्रम नियन मारा उपाय, विशष ४३वाय नही ४थु ५९ छ-आलोयणा परिणओ माह આલેચના આદિ કરવાને પરિણુત થયેલે આત્મા ગુરુની પાસે જવાને માટે ઉપડે છે ; પરંતુ કોઈ કારણે માર્ગમાં જ તેનું મૃત્યુ થઇ જાય, તે એવી સ્થિતિમાં ભાવની અપેક્ષાએ તેને શુદ્ધ-આરાધક જ માનવામાં આવે છે, તેને વિરાધક માનવામાં આવતો નથી.” वे गौतम स्वामी प्रश्न पूछे छे 3-'से य संपद्विए संपत्ते थेराय अमहा सिया 'महन्त! नियत स्थानथी याली नी छ भने स्थविशनी पासे આવી પહેંચે છે પણ ખરો, પરંતુ તે સ્થવિર મૂક બની જાય છે અને પ્રાયશ્ચિત मापपाने असमर्थ मनी 4 छ, मेवी परिस्थितिमा 'सेणं मंते ! कि बाराहए, श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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