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भगवतीमत्रो गाहोवइ कुलं पिंडवायपडियाए अणुपविठ्ठाए अन्नयरे अकिचट्ठाणे पडिसेविए तीसे णं एवं भवइ, इहेव ताव अहं एयस्स ठाणस्स आलोएमि जाव तवोकम्म पडिवज्जामि, त ओ पच्छा पवत्तिणीए अंतियं आलोएस्सामि जाव पडिवजिस्सामि, साय संपट्टियो असंपत्ता पवत्तिगीय अमुहा सिया, सा णं भंते ! किं आराहिया विराहियो ? गोयमा ! आराहिया, नो विराहिया, सा य संपटिया जहां निग्गंथस्स तिन्निगमा भणिया, एवं निग्गंथीएवि तिन्नि आलावगो भाणियहा, जाब आहिया, नो विहिया, से केणटुणं भंते ! एवं वुच्चइ-आराहए, नो विराहए ? गोयमा ! से जहानामए-केइपुरिसे एगं महं उवालोमं वा, गयलोमं वा, सणलोमं वा, कप्पासलोमं वा, तण सूयं वा, दुहा वा, तिहा वा, संखेजहा वा छिदित्ता अगणिकायसि पक्खिवेज्जा, से णूणं गोयमा ! छिज्जमाणे छिन्ने, पक्खिप्पमाणे पक्खित्ते, दज्जमाणे दडेत्तिवत्तत्वं सिया ? हंता, भगवं ! छिज्जमाणे छिन्ने जाव दड्ढे त्ति वत्तवं सिया, से जहावा केइ पुरिसे वत्थं अहतं वा, धोतं वा, तंतुग्गयं वा मंजिट्टा दोणीए पक्खि वेज्जा, से गूणं गोयमा ! उक्खिप्पमाणे उक्खित्ते, पक्खिप्पमाणे पक्खित्ते दजमाणे दडेत्ति वत्तवं सिया ! हंता, भगवं ! उक्खिप्पमाणे उक्खित्ते जाव दड्डेत्ति वत्तवं सिया, से तेणठेणं गोयमा! एवं बुच्चइ-आराहए, नो विराहए ॥ सू० ३ ॥
श्री. भगवती सूत्र :