________________
म. टीका ६१.८ उ.६ नं.३ निग्रन्थागधकतानिरूपणम्
६८७ हारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवजामि, तओपच्छा थेराणं अंतियं आलोएस्सामि, जाव तवोकम्म पडिवजिस्सामि, सेय सपट्रिओ असंपत्ते थेराय पुवामेव अमुहा सिया, से णं भंते ! किं आराहए विरोहए ? गोयमा ! आराहए, नो विराहए ?, सेय संपट्टिए असंपत्ते अप्पणावपुवामेव, अमुहासिया, सेणं भंते ! किं आराहए, विराहए ? गोयमा! आराहए, नो विराहए २, सेय संपढिए असंपत्ते अप्पणा य पुवामेव थेराय कालं करेज्जा, से गं भंते ! किं आराहए, विराहए ? गोयमा ! आगहए, नो विराहए ३, से य संपट्टिए असंपत्ते अप्पणा य पुकामेव कालं करेज्जा, से णं भंते! किं आराहए, विराहए ? गोयमा ! आराहए, नो विराहए ४, से य संपट्टिए संपत्ते थेराय अमुहासिया, से णं भंते! कि आरोहए, विराहए ? गोयमा ! ओराहए, नो विराहए, से य संपट्टिए संपत्ते अप्पणाय, एवं संपत्तेण वि चत्तारि आलावगा भाणियव्वा जहेव असंपत्ते णं, निग्गंथे ण य वहिया वियारभूमि वा, विहारभूमि वा निक्खंते णं अन्नयरे अकिच्चटाणे पडिसेविए, तस्स णं एवं भवइ-इहेव ताव अहं एवं एत्थ वि एते चेव अट्र आलावगा भाणियन्वा जाव नो विराहए, निग्गं थ ण य गोभाणुगामं दूइज्जमाणेणं अन्नयरे अकिञ्चट्टाणे पडिसेविए तस्स णं एवं भवइ-इहेव ताव अहं एत्थ वि ते चेव अट्ट आलावगा भाणियव्वा, जोव नो विराहए, निग्गंथीए य
श्री. भगवती सूत्र :