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प्रयचन्द्रिका टी. श.८ उ.६ म्.२ निम्रन्थदानधर्म निरूपणम् ६७५ नों अन्येषां दापयेत्, शेषं तदेव यावत् परिष्ठापयितव्यः स्यात्, एवं यावत् दशभिः प्रतिग्रहैः एवं यथा प्रतिग्रहवक्तव्यता भणिता एवं गुच्छक रजोहरणचोलपट्टक -कम्बल यष्ठि संस्तारकवक्तव्यता च भणितव्या, यावत् दशभिः संस्तारकैः उपनिमन्त्रयेत, यावत् परिष्ठापयितव्याः स्युः ॥सू० २॥ कोई निर्ग्रन्थ यावत् गृहपति के कुल में प्रवेश करता है और वह उसे दो पात्रों के लिये उपनिमंत्रण करता है-हे आयुष्मन ! एक पात्र का तुम उपयोग करना और दूसरा पात्र स्थविरों को देना ( से य त पडिगहेजा) अब वह उन दोनों पात्रों को ले लेता है । ( तहेव जाव तं नो अप्पणा पडिभुजेजा नो अन्नेसिं दावए सेसं तं चेव जाव परिहावेयवेसिया) इसके आगे का सब कथन पूर्व की तरह जानना चाहिये यावत् वह उस पात्र का स्पयं उपयोग न करे और न उसे दूसरे साधु को भी वह देवें आगे कथन पूर्व की तरह यहां लगा लेना चाहिये यावत् वह उसे परिष्ठापित कर देवें । ( एवं जाव दसहिं पडिग्गहेहिं एवं जहा पडिग्गहवत्तव्वया भणिया एवं गोच्छगर रणचोलपट्टगकंबललट्ठीसंथारग वत्तव्वया य भाणियच्या जाव दस स एहि उनिमंतेजा जाव परिहावेयवासिया) इमो तरह से दश पात्र तक कहना चाहिये । जिस तरह से पात्र के विषय में वक्तव्यता कही है उसी तरह से गुच्छा, रजोहरण, चोलपट्टक, कंबल, दण्ड और संस्तारक की वक्तव्यता કેઈ ગૃહસ્થને ત્યાં પધારે છે. તે ગૃહસ્થ આ પ્રમાણે કહીને તેને બે પાત્ર અર્પણ કરે છે
હે આયુષ્યન! એક પાત્ર તમે વાપરજે અને બીજું પાત્ર સ્થવિરેને આપશે.” (से य तं पडिगहेज्जा) नि ते मन्ने यात्रा प्राय रे छ. ( तहेव जाव तं नो अप्पणा पडिभुजेज्जा, नी अन्नेसिं दावए सेसं तं भाव परिद्ववेयवेसिया) ત્યાર બાદનું સમસ્ત કથન આગળ મુજબ સમજવું” તે પાત્રને ઉપયોગ તેનાથી પણ કરાય નહીં, બીજાને તે પાત્ર અપાય નહીં પણ તેણે તેને ભૂમિમાં પરઠવી દેવું જોઈએ ? त्यां सुधार्नु समस्त ४थन मी मागण भुर। सभा. (एवं जाव दसहि पडिग्गहेहिं एवं जहा पडिग्गहवत्तनया भणिया - एवं गोच्छगरयहरणचोलपट्टग कंबल लट्ठी संथारमवत्तव्यया य भाणियन्या जाव दसहि संथारएहिं उवनिमंतेजा जात्र परिहायचा सिया). मे प्रमाणे इस सुधीन। पात्रानी तयता समापी પાત્રના જેવી જ વકતવ્યતા ગુએછે, જેહરણ. એલપટ્ટક, કંબલ, દંડ અને સસ્તારક
श्री. भगवती सूत्र :