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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी. श.८ उ.५ मू०२ स्थूलपाणातिपातमत्याख्याननिरूपणम् ६३१ 'अहवा न करेइ, करेंतं नाणुजाणइ मणसा २३, अथवा विविध प्राणातिपातम एकविधेन करणेन प्रतिक्रामन् स्वयं न करोति कुर्वन्तं वा नानुजानाति मनसा २३, अहवा न करेड, करेंत णाणुजाणइ वयसा २४' अथवा द्विविधं पाणातिपातम् एकविधेन करणेन प्रतिक्रामन् स्वयं न करोति, कुर्वन्त वा नानुजानाति वचसा २४, “अहवा न करेइ, करेत णाणुजाणइ कायसा' २५, अथवा द्विविधं प्राणातिपातम् एकविधेन करणेन प्रतिक्रामन् स्वयं न करोति, कुर्वन्त वा नानुजानाति कायेन २५, 'अहवा न कारवेइ, करेतं गाणुजाणइ मणसा २६' अथवा विविधं प्राणातिपातम् एकविधेन करणेन प्रतिक्रामन् अन्यद्वारा न कारयति, कुर्वन्तं वा नानुजानाति मनमा २६ 'अहना न कारकरवाता है । ' अहवा न करेइ करेतं नाणुजाणइ मणसा २३ ' अथवा जब वह द्विविध माणातिपात का एकविधसे प्रतिक्रमण करता है, तब वह मनसे स्वयं उसे नहीं करता है और मनसे करते हुए की बह अनुमोदना नहीं करता है । 'अहवा न करेइ, करेंतं णाणुजाणइ वयमा २४' अथवा विविध प्राणातिपातका जब वह एकविधसे प्रतिक्रमण करता है तब वह वचनसे उसे स्वयं नहीं करता है और न करते हुए की वह वचनसे अनुमोदना करता है । 'अहवा न करेइ करेंतं नाणुजाणइ कायसा २५' अथवा जब वह द्विविध माणातिपात का एकविधसे प्रतिक्रमण करता है-तब वह कायसे स्वयं उस प्राणातिपातको नहीं करता है और न कायसे करते हुए की वह अनुमोदना करता है। 'अहवा न कारवेइ, करेंतं नाणुजाणइ मणसा २६' अथवा जब वह द्विविध प्राणातिपातका एकविधसे प्रतिक्रमण करता है तब वह मनसे उसे दूसरोंसे नहीं कराता है और न मनसे करते हुए नाणुजाणइ मणसा २3' (४) अथवा न्यारे ते विविधन विधे प्रति भए ४२ छ, ત્યારે તે પોતે મનથી પ્રાણાતિપાત કરતું નથી. અને પ્રાણાતિપાતકરનારની भनथी मनुभावना ४२ते नथी. 'अहवा न करेइ, करेंत नाणुजाणइ वयसा २४' (૫) અથવા દિવિધનું એકવિધે પ્રતિક્રમણ કરતે તે શ્રાવક વચનથી प्राणातियात ४२ते। नथी मने ४२नारनी क्यनथी अनुमहिना ४२ता नयी 'अहवा न करेइ करेत नाणुजाणइ कायसा २५' (6) मया विविधन विधे प्रतिभा કરતો તે શ્રાવક કાયાથી પ્રાણાતિપાત કરતું નથી અને કરનારની કાયાથી અનુમોદના ४२। नथी. 'अहवा न कारवेइ, करेंतं णाणुजाणइ मणसा २६ (७) अथवा જ્યારે તે દિવિધ પ્રાણાતિપાતનું એકવિધ પ્રતિક્રમણ કરે છે, ત્યારે તે પોતે મનથી પ્રાણાતિપાત કરાવતું નથી અને પ્રાણાતિપાત કરનારની મનથી અનુમોદના કરતો નથી. श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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