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________________ भगवतीसूत्रे प्रतिक्रामन् अन्यद्वारा न कारर्यात, कुर्वन्तं वा नानुजानाति वचसा कायेन १९, “दुविहं एगविहेणं पडिक्कममाणे न करेइ न कारवेइ मणसा २०, द्विविध प्राणातिपातम् एकविधेन करणेन प्रतिक्रामन् स्वयं न करोति, अन्यद्वारा वा न कारर्यात मनसा इत्यर्थः २०, ‘अहवा न करेइ, न कारवेइ, वयसा २१, अथवा विविध पूर्वोत्त, माणातिपातम् एकविधेन करणेन प्रतिक्रामन् स्वयं न करोति, अन्यद्वारा वा न कारयति वचसा २१' 'अहवा न करेइ, न कारवेइ कायसा २२, अथवा द्विविध प्राणातिपातम् एकविधेन करणेन प्रतिक्रामन स्वयं न करोति, अन्यद्वारा वा न कारयति कायेन २२, प्राणातिपात का द्विविधसे प्रतिक्रमण कराता हुआ वह अन्य द्वारा उसे वचन और कायसे नहीं करता है और न करते हुए की वह उन दोनोंसे अनुमोदना करता है। इस प्रकारसे ये पांचवें विकल्पके ९ भंग हैं। 'दुविहं एगविहेणं पडिक्कममाणे न करेइ, न कारवेइ मणमा २०' द्विविध प्राणातिपात का एकविधसे जब वह प्रतिक्रमण करता है तब वह मनसे उसे स्वयं नहीं करता है और न दूसरेसे उसे कराता है। 'अहवा न करेइ, न कारवेइ, वयसा २१' अथवा जब वह द्विविध प्राणातिपका एकविधसे प्रतिक्रमण करता है तब वह वचनसे उसे न करता है और वचनसे उसे किसीके द्वारा कराता है। ' अहवा न करेइ, न कारवेइ कायसा २२ ' अथवा जब वह द्विविध प्राणातिपातका एकविधसे प्रतिक्रमण करता है तब वह कायसे उसे नहीं करता है और न कायसे उसे किसी दूसरेके द्वारा करेंत णाणुजाणइ वयसा कायसा १९' (८) मया विविध प्रतिपात विविध પ્રતિક્રમણ કરતે શ્રાવક વચનથી અને કાયાથી પ્રાણાતિપાત કરાવતો નથી અને પ્રાણાતિપાત કરનારની તે બન્ને દ્વારા અનુમોદના કરતા નથી. આ પ્રમાણે પાંચમાં વિકલ્પના નવ ભંગ છે. वे सूत्रा२ ७४ वि४६५ना न लगनीय प्रभाव प्रतिपान ४३ छ- 'दुविह एगविहेणं पडिक्कममाणे न करेइ, न कारवेइ मणसा २० ' (१) विविध પ્રાણાતિપ્રાતનું જ્યારે તે એક પ્રકારે પ્રતિકમણ કરે છે, ત્યારે (૧) તે પોતે મનથી प्रातिपात ४२तेनथी भने अन्य पासे प्रतिपात रावत नथी. अहवा न करेइ, न कारवेइ वयसा २१' (२) अथवा न्यारे ते विविध प्रातिपात विधे પ્રતિક્રમણ કરે છે, ત્યારે તે વચનથી પ્રાણાતિપાત કરતું નથી અને બીજા પાસે પ્રાણાતિપાત शक्त। नथा. 'अहवा न करेइ, न कारवेइ कायसा २२ ' (3) अथवा न्यारे a દિવિધ પ્રાણાતિપાતનું એકવિધ પ્રતિક્રમણ કરે છે, ત્યારે તે કાયાથી પ્રાણાતિપાત કરતે नथी मन बीत पासे याथी प्रातिपात रावत नथी. ' अहवा न करेइ, करेत' श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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