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________________ प. टीका श.८ उ.५ मू.२ स्थूलमाणातिपातादिप्रत्याख्याननिरूपणम् ६०५ ११-द्विविध द्विविधेन प्रतिक्रामन् न करोति, न कारयति मनसा वचसा, १२ अथवा न करोति, न कारयति मनसा कायेन, १३-अथवा न करोति, न कारयति, वचसा कायेन, १४-अथवा न करोति, कुर्वन्सं नानुजानाति मनसा वचसा, १५ अथवा न करोति, कुर्वन्तं नानु नानाति मनसा कायेन, वह अनुमोदना नहीं करता है । इसी तरहसे वचन संबंधी, कारित और अनुमोदनाको जानना चाहिये । और इसी तरहसे कायसंबंधी कारित और अनुमोदनाको जानना चाहिये। (दुविहं दुविहेणं पडिक्कममाणे न करेइ न कारवेइ मणसा वयसा) जब वह दो प्रकार के प्राणातिपातका दो प्रकारसे प्रतिक्रमण करता है तब वह मनसे और वचनसे प्राणातिपात स्वयं नहीं करता है और न दूसरोंसे ही कराता है । (अहवा न करेइ न कारवेइ मणसा कायसा) अथवा जब वह दो प्रकार के प्राणातिपात का दो प्रकारसे करनेका प्रतिक्रमण करता है तब वह मनसे और कायसे न करता है न उसे कराता है (अहवा न करेइ न कारवेइ वयसा कायसा ) अथवा जब वह दो प्रकारके पाणातिपात करनेका प्रतिक्रमण करता है उस समय वह वचनसे और कायसे उस प्राणातिपातको न स्वयं करता है और न करवाता है । (अहवा न करेइ, करेंत नाणुजाणइ मणसा वयसा १५) अथवा जब वह दो प्रकारसे दो प्रकारके प्राणातिपात करनेका प्रतिक्रमण करता है तब वह मनसे और कायसे उस प्राणातिपातको न स्वयं करता है और न करनेवालेकी अनुमोदना करता है । (अहवा न करेइ બીજા પાસે પ્રાણાતિપાત કરાવતા નથી અને પ્રાણાતિપાત કરનારની મન, વચન અને याथी अनुमना २ नथी. ( दुविहं दुविहेणं पडिक्कममाणे न करेइ, न कारवेइ, मणमा वयसा) न्यारे में अपना यातिपातन मे ॥२ प्रतिभार કરે છે. ત્યારે તે મનથી અને વચનથી પિતે પ્રાણાતિપાત કરતો નથી અને બીજા પાસે प्रातिपात ४२. नयी. ( अहवा न करेइ न कारवेइ मणसा, कायसा) अथवा त भनथी मने आयायी प्रायतिपात ४२त नथी ४२वत नथी, (अहवा - न करेइ, न कारवेइ, वयसा कायसा) अया न्यारे ते मे ४२ना प्रातिपात मे प्रारे પ્રતિકમણ કરે છે. ત્યારે તે વચન અને કાયાથી પ્રાણાતિપાત કરતું નથી અને બીજાની पासे प्रातियात रावत नथी. (अहवा-न करेइ, करे तणाणुजाणइ मणसा वयसा) અથવા જ્યારે તે બે પ્રકારે બે પ્રકારના પ્રાણાતિપાતનું પ્રતિક્રમણ કરે છે. ત્યારે મનથી અને વચનથી તે પોતે પ્રાણાતિપાત કરતું નથી અને કરાવતે અનુમોદના પણ કસ્તો નથી. श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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