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________________ म. टीका श. ८ उ.५ मु.२ स्थूलप्राणातिपातादिप्रत्याख्याननिरूपणम् ६०३ द्विविधेन प्रतिक्रामन् न करोति, न कारयति, कुर्वन्तं नानुजानाति मनसा वचसा, ३ अथवा न करोति, न कारयोत, कुवन्तं नानुजानाति मनसा कायेन, ४ अथवा न करोति न कारयति, कुर्वन्तं नानुजानाति वयमा कायेन, ५ त्रिविधम् एकविधेन पतिक्रामन् न करोति न कारयति, कुर्वन्तं करता है, इसी तरह से वह वचन से न प्राणातिपात करता है, न वचन से उसे कराता है न उसकी वचन से अनुमोदना करता है। इसी तरह वह कायसे न प्राणातिपात करता है न कराता है और न करनेवाले को अनुमोदना करता है । (तिविहं दुविहेणं पडिक्कममाणे न करेइ, न कारवेइ, करंतं णाणुजाण मणसा क्यसा) त्रिविधका ज वह द्विविधसे प्रतिक्रमण करता है तब उस स्थिति में मनसे प्राणातिपातको नहीं करता है, दूसरोंसे उसे मनसे वह नहीं कराता है, और प्राणातिपातको करनेवालेकी अनुमोदना वह मनसे नहीं करता है इसी तरह वह वचनसे प्राणातिपातको नहीं करता है, न कराता है और न करनेवालेकी वह वचनसे अनुमोदना ही करता है । (अहवा न करेइ, न कारवेइ, करंतं गाणुजाणइ, मणसा कायसा) अथवा मनसे एवं कायसे वह न प्राणातिपातको करता है, न उन दोनोंके द्वारा वह किसी दूसरेसे उसे कराता है और न उन दोनोंके द्वारा वह उसे करनेवालेकी अनुमोदना करता है । (अहवा न करेइ न कारवेइ, करंतं नाणुजाणइ वयसा कायसा) अथवा वचन और कायसे वह प्राणातिपातको नहीं करता है, न कराता है और न करनेवालेकी अनुमोदना करता है। (तिविहं एगविहेणं पडिक्कममाणे न करेइ, न कारवेइ, करेइ. न कारवेइ, करंतं णाणुजाणइ मणसा वयसा) न्यारे ते निधनु द्विविध પ્રતિક્રમણ કરે છે, ત્યારે તે મનથી પ્રાણાતિપાત કરતો નથી, બીજા દ્વારા મનથી પ્રાણાતિપાત કરાવતા નથી, અને પ્રાણાતિપાત કરનારને મનથી અનુમોદના આપતો નથી. એ જ પ્રમાણે તે વચનથી પ્રાણાતિપાત કરતો નથી, કરાવત નથી અને કરનારને વચનથી અનુમોદના मापत नथी. ( अहवा - न करेइ कारवेइ, करतं णाणुजाणइ, मणसा कायसा) અથવા મન અને કાયાથી તે પ્રણાતિપાત કરતો નથી, તે બન્ને દ્વારા તે બીજા પાસે પ્રાણાતિપાત કરાવતો નથી, અને તે બન્ને દ્વારા તે પ્રાણાતિપાત કરનારની અનુમોદના तो नथी. ( अहवा न करेइ न कारवेइ, करंतं नाणुजाणइ वयसा कायसा) અથવા વચન અને કાયાથી મે પ્રાણાતિપાત કરતું નથી, અને કરનારની અનુમોદના કરતા नयी. (तिविहं एगविहेणं पडिक्कममाणे न करेइ, न कारवेइ, करंतं णाणुजाणइ श्री भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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