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प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ८ उ. २ स्व. १२ कायिक्यादिक्रियानिरूपणम् क्रियाः विशेषाधिकाः, मिथ्यादृष्टीनाम् अविरतसम्यग्दृष्टीनाश्च जीवानां तासा सद्भावाद, 'पारिग्गहियाओ विसेसाहियाओ' पारिग्रहिक्यः क्रियाः विशेषाधिकाः, उपर्युक्तानां मिथ्यादृशार्माविरतसम्यग्दृशाम् देशविरतानाञ्च जीवानां तासां सद्भावत्, 'आरंभियाओ किरियाओ विसेसाहियाओ' आरम्भिक्यः क्रियाः विशेषाधिकाः, उपर्युक्तानां प्रमत्तसंयतानाच जीवानां तासां सद्भावात्, 'मायावत्तियाओ विसेसाहियाओ' मायाप्रत्ययिक्यः क्रिया विशेषाधिका भवन्ति पूर्वोक्तानां सर्वेषाम् अप्रमत्तसंयतानाञ्च जीवानां तासां सद्भावात्, अत्रार्थे गाथाद्वयम् - 'मिच्छा पञ्चक्खाणे, परिग्गहारंभ-माय किरियाओ,
कमसो मिच्छा - अविरय- देस पमत्त - पमत्ताणं ॥ १॥
क्यों कि इन क्रियाओंका सद्भाव मिध्यादृष्टि जीवों में और अविरत सम्यग्दृष्टि जीवों में पाया जाता है । ' परिग्गहियाओ विसेसाहियाओ ' पारिग्रहिकी क्रियाएँ इनसे भी विशेषाधिक हैं- क्यों कि ये क्रियाएँ मिथ्यादृष्टियों में अविरत सम्यग्दृष्टियों में, और देशविरतिवाले जीवां में पायी जाती हैं। 'आरंभियाओ किरियाओविसेसाहियाओ' इनकी भी अपेक्षा आरंभिक क्रियाएँ विशेषाधिक हैं-क्यों कि ये क्रियाएँ पूर्वोक्त मिथ्यादृष्टि आदि जीवों में और प्रमत्त जीवों में पायी जाती हैं । मायावत्तियाओ विसे साहियाओ' मायाप्रत्ययिकी क्रियाएँ इनसे भी विशेषाधिक हैं क्यों कि ये क्रियाएँ पूर्वोक्त मिथ्यादृष्टि आदि जीवों में और अप्रमत्त संयत सकषायी जीवों में पायी जाती हैं । प्रज्ञापना सूत्रके २२ वें पद में जो कायिको आदि क्रियाएँ कही गई हैं- उनका तात्पर्य ऐसा है जो ये कायिकी, आधिकरणिकी, प्रादेषिकी, पारितापकी,
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लवामां अने अविरत सभ्यगू दृष्टि कवोभां हाथ छे. 'परिग्गाहियाओ विसेसाहियाओ' પારિગ્રહિકી ક્રિયાએ તેમના કરતાં પણ વિશેષાધિક હાય છે, કારણકે તે ક્રિયાઓના સદ્ભાવ મિથ્યા દૃષ્ટિ જીવામાં, અવિરત સમ્યગ્ દષ્ટિ જીવામાં અને દેશવિરુતિવાળા लवोभां लेवामां आवे छे. 'आरंभियाओ किरियाओ विसेसाहियाओ' मारलिए ક્રિયાએ તેમના કરતાં પણ વિશેષાધિક હોય છે, કારણકે પૂર્વાંકત મિથ્યાસૃષ્ટિ દિ वामां ने प्रभत्तसंयत वामां तेभनो सहभाव होय छे. 'मायावत्तियाओ विशेसाहियाओ ' मायाप्रत्यबिडी किया। तेभना रतां या विशेषाधि होय छे, आर પૂર્વકિત મિથ્યાદ્રષ્ટિ આદિ જીવામાં તથા અપ્રમત્તસયત સાયી જીવામાં તે ક્રિયાઓના સદ્ભાવ જોવા મળે છે. પ્રજ્ઞાપના સૂત્રના રરમાં પમાં કાયિકી આદિ જે ક્રિયાઓ કહી છે તેનું તાત્પર્ય નીચે પ્રમાણે છે—
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૬