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भगवतीसूत्रे रयणप्पभा पुढवी किं १ चरिमा २ अचरिमा, चरमपयं निरवसेस भाणियन्वं' हे भदन्त ! इयं खलु रत्नप्रभा पृथिवी किं चरमा-भान्तवर्तिनी, किंश अचरमा मध्यवर्तिनी ? भगवानाह-चरमपद निरवशेष भणितव्यम्, अत्र प्रज्ञापनायाः दशमं चरमपदं सर्व वक्तव्यम् तस्यायमाशय चरम नाम प्रान्तपर्यन्तवति तच्चेदं चरमत्वम् सापेक्षम्-'उक्तञ्च 'अन्यद्रव्यापेक्षया इदं चरम द्रव्यम्' इति व्यपदिश्यते, यथा पूर्वशरीरापेक्षया इद चरमं अशरीरमिति व्यपदेशो भवति, एवम् चरइ नाम अमान्तं मध्यवर्ति, तदप्येतत् अचरमत्वं सापेक्षम्, उक्तश्च-अन्यद्रव्यापेक्षया इदम् अचरमं द्रव्यम् इति व्यवहियते, 'यथा-अन्त्य
अब गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं 'रयणप्पभा पुढवी किं चरिमा अचरिमा, निरवसेसं भाणियव्वं' हे भदन्त ! यह रत्नप्रभा पृथिवी क्या चरम - प्रान्तवतिनी है कि अचरम - मध्यवित्तनी है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं- हे भदन्त ! यहाँ पर प्रज्ञापनाका दशवां चरमपद् सम्पूर्ण कहना चाहिये। उसका यह आशय है- प्रान्तवतीका नाम चरम है-यह चरमता मापेक्ष होती है, कहा भी है- 'अन्य द्रव्यापेक्षया इदं चरमं द्रव्यं' अन्य द्रव्यकी अपेक्षा से ही यह चरमद्रव्य है- ऐसा कहा जाता है- जैसे पूर्व शरीरकी अपेक्षा यह चरम शरीर है एसा कहा जाता है. इसी तरह अचरम यह नाम अप्रान्त मध्यवर्तीका है। यह अचरमपन भी सापेक्ष होता है। कहाभी है'अन्य द्रव्यापेक्षया इदं अचरमं द्रव्यम् ' अन्य द्रव्यकी अपेक्षासे ही यह द्रव्य अचरम द्रव्य है ऐसा कहा जाता है। जैसे अन्य शरीर को अपेक्षा से यह मध्य शरीर है एसा कहा जाता है। तथा- च प्रमा ८ वत्मामा-सिद्धशिवा. प्रश्न :- 'रयणप्पभा पुढवी किं चरिना अचरिमा निरवसे भाणिय' हे महान! मनमा । शु १२-प्रांतान छ । અચરમ-મધ્યવર્તિની છે? ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે હે ગૌતમ ! અહીં આ પ્રજ્ઞાપના સૂત્રના દશમા ચરણ પદનું સમગ્ર કથન સમજી લેવું. કહેવાનો હેતુ એ છે કે પ્રાંતવતિનું नाम य२५ छ २॥ २२।। सापेक्ष सय छे. युं ५५ छ. ' अन्य द्रव्यापेक्षया इदम् चरमं द्रव्यं ' भीकन द्रव्यनी अपेक्षायी०४ मा यम द्रव्य छ । हेवाय छे. सम पूर्व શરીરની અપેક્ષાથી આ ચરમ શરીર છે એમ કહેવાય છે. એ જ રીતે અચરમ એ નામ અપ્રાંતમધ્યવતી નું છે આ અચરમવ અચરમપણું પણ સાપેક્ષ હોય છે. કહ્યું પણ છે. 'अन्यापेक्षया इंदं अचरमं द्रव्यं अन्य व्यनी अपेक्षाथी मा द्र०य भयरम કહેવાય છે જેમ અન્ય શરીરની અપેક્ષાથી આ મધ્ય શરીર છે તેવું કહેવાય છે. તેવીજ
श्री. भगवती सूत्र :