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________________ ४२ भगवतीसूत्रे प्रयोगपरिणताश्च, अपर्याप्तक-यावत्-परिणताश्च । एवं त्रीन्द्रिया अपि । एवं चतुरिन्द्रिया अपि । रत्नप्रभापृथिवीनैरयिक० पृच्छा ? गौतम ! द्विविधाः पज्ञप्ताः, तद्यथा-पर्याप्तकरत्नप्रभापृथिवी-यावत् परिणताश्च, अपर्याप्तक-यावत् परिणताश्च, एवं यावत् अधः सप्तमी० । संमूच्छिमजलचरतिर्यक्० पृच्छा, दोइन्द्रिय प्रयोगपरिणतपुद्गल कितने प्रकार के हैं ? (गोयमा) हे गौतम (दुविहा पण्णत्ता-तंजहा पजत्तवेइंदियपओगपरिणया य अपजत्तग जाव परिणयाय) दो इन्द्रिय प्रयोगपरिणत पुद्गल दो प्रकारके कहे गये हैं एक पर्याप्तक दोइन्द्रिय प्रयोगपरिणत पुद्गल और दूसरे अपर्याप्तक दोइन्द्रियमयोगपरिणत पुद्गल (एवं तेइंदिया वि) इसी प्रकारसे तेइन्द्रियोंको भी जानना चाहिये (एवं चरिंदिया वि) चौइन्द्रियोंको भी जानना चाहिये । ( रयणप्पभा पुढवि नेरइय० पुच्छ। ) हे भदन्त ! रत्नप्रभा पृथिवी नैरयिक प्रयोगपरिणत पुद्गल कितने प्रकारके कहे गये हैं ? ( गोयमा) हे गौतम ! (दुविहा पण्णत्ता) रत्नप्रभा पृथिवी नैरयिक प्रयोगपरिणत पुद्गल दो प्रकारके कहे गये हैं (तंजहा) जो इस प्रकार से हैं (पजत्तगरयणप्पभापुढविनेरइय जाव परिणयाय, अपजत्तगजाव परिणयाय) पर्याप्तरत्नप्रभा पृथिवी नैरयिक प्रयोगपरिणत पुद्गल और अपर्याप्त रत्नप्रभा पृथिवी नरयिक प्रयोगपरिणत पुद्गल (एवं जाव अहे सत्तमा) इसी तरहसे यावत् अधः सप्तम पृथिवीतक सारे ४२ ५७ छ. (बेडदियपओगपरिणयाणं पुच्छा) हे महन्त ! हन्द्रिय प्रयोगपरिणत पुस ८८। प्रा२ना छ ? (गोयमा !) 3 गौतम ! (दुविहा पण्णत्तातंजहा-पजनगबेइंदियपओगपरिणया य, अपज्जत्तग जाव परिणया य) દ્વીન્દ્રિય પ્રયોગપરિણત યુગલના નીચે પ્રમાણે બે પ્રકાર કહ્યાં છે-(૧) પર્યાપ્તક હીન્દ્રિય प्रयोगपरिणत पुस मने (२) २५पर्याप्त द्वीन्द्रिय प्रयोगपरित पुगत. (एवं तेइं. दिया वि) से प्रमाणे तन्द्रियाना विषयमा ५ सम.. (एवं चउरिदिया वि) यतुन्द्रियोना विषयमा पशु से प्रभारी समj. (रयणप्पभापुढवि नेरइय gઝા) હે ભદન્ત ! રતનપ્રભાપૃથ્વી નૈરયિક પ્રયોગપરિણત પુગલ કેટલા પ્રકારના या छ ? (गोयमा !) गौतम ! (दविहा पण्णत्ता-तं जहा) २नमा पृथ्वीनारथि प्रयोगपरित पुसना नीय प्रमाणे मे ॥२ या -(पज्जत्तगरयणप्पभापुढवि नेरइय जाव परिणया य, अपज्जत्तग जाव परिणया य) (१) पर्याप्त रत्नप्रमा પૃથ્વીૌરયિક પ્રયોગપરિણુત પુદ્ગલ અને (૨) અપર્યાપ્તક રત્નપ્રભાપૃથ્વીનૈરયિક પ્રયોગपरिणत पुस. (एवं जाव अहे सत्तमा) 0 प्रमाणे सातभी पृथ्वी सुधान। श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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