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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ.१ मू.३ मूक्ष्मपृथ्वीकायस्वरूपनिरूपणम् ४१ छाया-सूक्ष्मपृथिवीकायिकै केन्द्रियप्रयोगपरिणताः खलु भदन्त ! पुद्गलाः कतिविधाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! द्विविधाः प्रज्ञप्ताः-पर्याप्तकसूक्ष्मपृथिवी. कायिक-यावत्-परिणताश्च अपर्याप्तकसूक्ष्मपृथिवीकायिक-यावत्-परिणताश्च, बादरपृथिवीकायिकैकेन्द्रिय० यावत् वनस्पतिकायिकाः । एकैके द्विविधाः पुद्गलाः-सूक्ष्माश्च, बादराश्च, पर्याप्तकाः, अपर्याप्तकाश्च भणितव्याः। द्वीन्द्रियप्रयोगपरिणताः खलु पृच्छा ? गौतम ! द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-पर्याप्तकद्वीन्द्रिय सुहमपुढविकाइय' इत्यादि । सूत्रार्थ-(सुहुमपुढविक्काइय एगिदियपओगपरिणया णं भंते ! पोग्गला कइविहा पण्णता) हे भदन्त सूक्ष्म पृथिवीकायिक एकेन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गल कितने प्रकारके कहे गये हैं (गोयमा) हे गौतम ! (दुविहा पण्णत्ता) सूक्ष्मपृथिवीकायिक एकेन्द्रिय पयोगपरिणत पुद्गल दो प्रकारके कहे गये हैं (पजत्तगसुहुम पुढविकाइय जाव परिणया य, अपजत्तगसुहमपुढविकाइय जाव परिणया य) एक पर्याप्तक सूक्ष्मपृथिवीकायिक एकेन्द्रियप्रयोगपरिणतपुद्गल और दूसरे अपर्याप्तकसूक्ष्म पृथिवीकायिक एकेन्द्रिय प्रयोगपरिणत पुद्गल (बायरपुढविकाइयएगिदिय० जाव वणस्सइकाइया एक्केका दुविहा पोग्गला सुहुमाय बायराय, पज्जत्तगा, अपजत्तगाय भाणियव्वा) बादरपृथिवीकायिक एकेन्द्रिय यावत् वनस्पतिकायिक ये सब एकएक दो दो प्रकार के हैं मूक्ष्म, बादर, पर्याप्त, अपर्याप्तक (बेईदियपओगपरिणयाणं पुच्छा) हे भदन्त ! 'सुहुम पुढविक्काइय' त्याहि सूत्रा-(सुहमपुढविक्काइय एगिदियपओगपरिणया णं भंते ! पोग्गला काविहा पण्णता ?) मह-त! सूक्ष्मवीय: मेन्द्रियप्रयोगपरिणत पुग 326 ना ४ छ ? (गोयमा !) गौतम ! (दविहा पण्णत्ता) सूक्ष्मपृथ्वी4s मेन्द्रिय प्रयोगपरिणत हासना नाय प्रमाणे मे प्रा२ ४था छ- (पज्जत्तगसुहमपुढविकाइय जाव परिणया य, अपज्जत्तगसुहुमपुढविकाइय जाच परिणया य) (૧) પર્યાપ્તક સૂમપૃથ્વીકાયિકએકેન્દ્રિય પ્રયોગપરિણત પુદ્ગલ, (૨) અપર્યાપ્તક સૂક્ષ્મ यि४ मेन्द्रिय प्रयोगपरिणत पुस. (बायरपुढविकाइय एगिदिय० वणस्सइकाइया एकेका दुविहा पोग्गला सुहुमा य- बायरा य, पज्जत्तगा, अपज्जत्तगा य भाणियया) मा४२ पृथ्वीय मेन्द्रियना ५४ पर्याप्त मने अपर्याप्त सेवा બે પ્રકાર છે. વનસ્પતિકાય પયતના પ્રત્યેક એકેન્દ્રિયેના સૂમ અને બાદર એવા બે પ્રકાર છે, અને તે પ્રત્યેકને સૂક્ષ્મના અને બાદરના પણ પર્યા'તક અને અપર્યાપ્તક श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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