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________________ ५१० भगवतीसूत्रे कालतः श्रुताज्ञानविषय कालमाश्रित्य श्रुताज्ञानी श्रुताज्ञानपरिगत काल यावत्- प्ररूपयति, 'भावओ णं सुयअन्नाणी मुयअन्नाणपरिगए भावे आघवेइ, तंचेव' भावतः खलु श्रुताज्ञानी श्रुताज्ञानपरिगतान् भावान् आख्यापयति, तदेव - प्रज्ञापति प्ररूपयति, गौतमः पृच्छति'विभंगणाणस्स णं भंते ! केइए विसए पण्णत्ते ?' हे भदन्त ! विभङ्गज्ञानस्य खलु कियान् विषयः प्रज्ञप्तः ? भगवानाह- 'गोयमा ! से समासओ चउबिहे पण्णत्ते' हे गौतम ! स विभङ्गज्ञानस्य विषयः, तद् वा विभङ्गज्ञान समासतः संक्षेपतः चतुर्विधं प्रज्ञप्तम्, 'तंजहा- व्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ' तद्यथा- द्रव्यतः. क्षेत्रतः, कालतः, भावतः, 'दबओ णं विभंगनाणी विभंगनाणपरिगयाइं दव्वाइं जाणइ, पासइ' द्रव्यतः विभङ्गज्ञानविषयं कालको कहता है यावत् युक्तिपूर्वक उसका निरूपण करता है । 'भावओ णं सुयअनाणी, सुय अन्नाण परिगए भावे आघवेइ, तंचेव' भावकी अपेक्षा लेकर श्रुताज्ञानी ताज्ञान द्वारा परिणत भावोंको कहता है यावत् युक्तिपूर्वक उनका निरूपण करता है । अब गौतम स्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं- 'विभंगनाणस्स णं भंते ! केवइए विसए पण्णत्ते' हे भदन्त ! विभंगज्ञानका विषय कितना कहा गया है ? उत्तरमें प्रभु कहते हैं- 'गोयमा' हे गौतम ! 'से समालओ चउविहे पण्णत्ते' विभंगज्ञानका विषय अथवा विभंगज्ञान संक्षेपसे चार प्रकारका कहा गया है 'तंजहा' जो इस तरहसे है-'दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ' द्रव्यकी अपेक्षासे, क्षेत्रकी अपेक्षासे कालकी अपेक्षासे और भावकी अपेक्षासे 'दव्वओणं विभंगनाणी, विभंगनाणपरिगयाई दव्वाइं जाणइ, पासई' द्रव्यकी अपेक्षा लेकर विभंगज्ञानी विभंगज्ञान यावत् - युक्तिपूर्ण तनु नि३५९५ ४२ छ. 'भावओ णं सुयअन्नाणी सुयअन्नाणपरिगए भावे आघवेइ तं चेव' मानी अपेक्षान। माश्रय ४रीने श्रुतज्ञानी श्रुताशान परिणत मावाने हे छे. यावत् युक्तिपूर्व तेनुं नि३५५ ४२ छ. 'विभंगनाणस्स णं भंते ! केवइए विसए पण्णत्त' भगवान् ! विमानना या विषय हा छ ? 6. :- 'गोयमा' 3 गौतम!' से समासओ चविहे पण्णत्ते'त पिशानना विषय मेटले विज्ञान संक्षेपत्तथी यार प्रहारनु ४ छ 'तं जहा' २ मा प्रभारी छे. 'दव्वओ, खेत्तओं, कालओ, भावओ' द्रव्यनी अपेक्षाथी, क्षेत्रनी मपेक्षायी, जनी अपेक्षाथी मने माना अपेक्षाथी 'दव्वणो णं विभंगनाणी विभंगनाणपरिगयाइं दवाइं जाणइ पासइ' ०५ना अपेक्षा शत विज्ञान विभ श्री. मरावती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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