SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 468
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४५६ भगवतीसूत्रे भजनया भवन्ति, तथा च-इन्द्रियलब्धिका ये ज्ञानिनस्तेषां चत्वारि ज्ञानानि भजनया बोध्यानि, केवलज्ञानन्तु न, केवलिनामिन्द्रियोपयोगाभावात्, ये तु अज्ञानिनस्तेषामज्ञानत्रयं भजनयवेति भावः । गौतमः पृच्छति- 'तस्स अलद्धियाणं पुच्छा' हे भदन्त ! तस्य इन्द्रियस्य अलब्धिकाः जीवाः किं ज्ञानिनो भवन्ति, अज्ञानिनो वा ? इति पृच्छा प्रश्नः, 'भगवानाह-गोयमा ! नाणी, नो अन्नाणी, नियमा एगनाणी केवलनाणी' हे गौतम! इन्द्रियालब्धिकाः ज्ञानिनो भवन्ति, नो अज्ञानिनः, ते खलु इन्द्रियालब्धिकाः केवलिन एव इति नियमात् नियमतः एकज्ञानिनस्ते केवलज्ञानिन एव भवन्ति, 'सोइंदियलद्धिया णं जहा इंदियलद्धिया' श्रोत्रेन्द्रियलब्धिकाः खलु जीवाः यथा इन्द्रियलब्धिकास्तथैव वक्तव्याः, ते च ये ज्ञानिनस्ते केवलिभिन्नत्वात् भजनया प्रथमज्ञानचतुष्टयशालिनो भवन्ति, अज्ञानिनस्तु भजनया व्यज्ञानिनो भवन्ति । गौतमः केवलियोंको इन्द्रियोंके उपयोगका अभाव रहता है। अब गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं- 'तस्स अलद्धियाणं पुच्छा' कि हे भदन्त ! जो जीव इन्द्रियालब्धिवाले होते हैं- वे क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? इसके उत्तरमें प्रभु कहेते हैं- 'नाणी, नो अन्नाणी' हे गौतम ! जो जीव इन्द्रियोंकी लब्धि विनाके होते हैं वे ज्ञानी होते हैं अज्ञानी नहीं होते हैं। ज्ञानियोंमें भी वे दो तीन आदि ज्ञानवाले नहीं होते हैं। किन्तु एक केवलज्ञानवाले ही होते हैं। ऐसा नियम है 'सोइंदियलद्रियाणं जहा इंदियलद्धिया' जिस तरह से इन्द्रिय लब्धिवाले जीवोंको कहा गया है उसी तरहसे श्रोत्रइन्द्रिय लब्धिवाले जीवों को जानना चाहिये । अर्थात् श्रोत्रइन्द्रिय लब्धिवाले जीव ज्ञानी और अज्ञानी दोनों प्रकारके होते हैं इनमें जो ज्ञानी होते हैं वे केवलीसे भिन्न होते हैं इसलिये वे भजनासे चार ज्ञानवाले होते हैं और जो प्रश:- 'तस्स अलद्धियाणं पुच्छा' लगवान ! १ द्रियाणा बीय छे. ते ज्ञानी डाय छ , जानी होय छे ? ७.:- 'नाणी नो अन्नाणी । गौतम! જે જીવ ઇંદ્રિયની લબ્ધિ રહિત હોય છે. તેઓ જ્ઞાની જ હોય છે. અજ્ઞાની હોતા નથી. નાનીઓમાં પણ બે ત્રણ આદિજ્ઞાનવાળા નહીં પણ ફકત એક કેવળજ્ઞાનવાળા જ હોય છે ते नियम छ. 'सोइ दियलद्धियाणं जहा इदियलद्धिया' की रीते Fिeqाणा જીવોના વિષે કહ્યું છે તેવી જ રીતે શ્રોત્રલબ્ધિવાળા જીના વિષયમાં પણ સમજવું. અથાત શ્રોત્રઈદ્રિયલબ્ધિવાળા જીવ જ્ઞાની અને અજ્ઞાની બંને પ્રકારના હોય છે. તેઓમાં જે નાની હોય છે. તેઓ કેવળીઓથી જુદા પ્રકારના હોય છે. એટલે ભજનાથી તેઓ ચાર જ્ઞાનવાળા હોય છે અને તેઓમાંના અજ્ઞાની ભજનાથી ત્રણ અજ્ઞાનવાળા હોય છે. પ્રશ્ન श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy