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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ८ उ. २. ९ लब्धिस्वरूपनिरूपणम् अलखियाणं पंच नाणाई, तिन्नि अन्नाणाई भयणार' तस्य बालपण्डितवीर्यस्य संयतासंयतस्य अलब्धिकानाम् अश्रात्रकाणाम् पञ्च ज्ञानानि, त्रीणि अज्ञानानि भजनया भवन्ति । गौतमः पृच्छति - 'इंदियलडिया णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी ?' हे भदन्त । इन्द्रियलब्धिकाः खलु जीवाः किं ज्ञानिनो भवन्ति, अज्ञानिनो वा ? भगवानाह - 'गोयमा ! चत्तारि णाणाई, तिन्नि य अन्नाणाई भयणा' हे गौतम ! इन्द्रियलब्धिकानां चत्वारि ज्ञानानि, त्रीणि च अज्ञानानि पण्डितवीर्य की अलब्धिवाले होते हैं 'तस्सअलद्धियाणं पंच नाणाई तिनि अन्नाणाई भगणाए' वे ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी भी होते हैं-जो जीव इनमें ज्ञानी होते हैं उनमें भजनासे पांच ज्ञान तक हो सकते हैं और जो अज्ञानी होते हैं उनमें भी भजनासे तीन अज्ञान तक हो सकते हैं । बालपण्डितवीर्यका तात्पर्य संयतासंयत से है- इसकी अलब्धिवाले अभावक होते हैं । अश्राचक में सिद्ध भी आजाते हैं । अतः इसी अपेक्षासे यहां पांच ज्ञानोंका होना भजनासे कहा गया है। , अब गौतम स्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं- 'इदियलद्धियाणं भंते 1 जीवा किं नाणी, अन्नाणी' हे भदन्त ! जो जीव इन्द्रियलब्धिवाले होते हैं वे क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - ' चत्तारि नाणाई तिन्नि य अन्नाणाई भयणाए हे गौतम ! जो जीव इनमें ज्ञानी होते हैं उनको भजनासे चार ज्ञान होते हैं और जो अज्ञानी होते हैं उनमें तीन अज्ञान भजनासे होते हैं । इन्द्रियलब्धिवाले ज्ञानियोंमें केवलज्ञान नहीं होता है, क्यों कि असन्धिवाणा होय छे तेथे 'तस्स अलद्धियाणं पंचनाणाई तिन्नि अन्नाणाई भयणाए ' જ્ઞાની પણ હોય છે અને અજ્ઞાની પણ હોય છે, જે જીવ તેમાં જ્ઞાની હોય છે. તેમાં પાંચ જ્ઞાન ભજનાથી હોય છે અને જેજીવ અજ્ઞાની હોય છે તેઓને ગણુ અજ્ઞાન ભજનાથી હોવાની શકયતા છે.- હાય છે. આલપડિતવી'નું તાત્પ સંચતા સયતથી છે. તેની અલબ્ધિવાળા અશ્રાવક હોય છે. અશ્રાવકમાં સિદ્ધો પણ આવી જાય છે એટલા भाटे ते अपेक्षाये पांथ ज्ञानानुं डोवुं. लग्नाथी छे. अभ :- 'इंदियलद्धियाणं ते जीवा किं नाणी अन्नाणी' हे लहन्त ! नेक इंद्रिय सम्धिवाणा होय है. तेथे। ज्ञानी होय छे } अज्ञानी ? :- 'चत्तारिनाणाई तिन्नि य अन्नाणाई भयणाए ' હૈ ગૌતમ ! જે જીવ તેએમાં જ્ઞાની હાય તેને ભજનાથી ચાર જ્ઞાન હોય છે અને અજ્ઞાની હાય છે તેએામાં ભજનાથી ત્રણ અજ્ઞાન હોય છે. ઇંદ્રિયલબ્ધિવાળા જ્ઞાનીએમાં કેવળજ્ઞાન હોતુ' નથી. કેમકે કેવળીઓમાં ઇંદ્રિયાના ઉપયોગના અભાવ હોય છે. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૬ ४५५
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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