SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 462
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४५० भगवतीमत्रे नाणी य' ये द्विज्ञानिनस्ते आभिनिबोधिकज्ञानिनश्च, श्रुतज्ञानिनश्च भवन्ति, 'जे तिन्नाणी ते आभिणिबोहियनाणी सुयनाणी, ओहिनाणी य' ये त्रिज्ञानिनस्ते आभिनिबोधिकज्ञानिनः, श्रुतज्ञानिनः, अवधिज्ञानिनश्च भवन्ति, 'तस्स अलद्धियाणं पंच नाणाई, तिन्नि अन्नाणाई भयणाए' तस्य चारित्राचारित्रस्य अलब्धिकानां श्रावकभिन्नानां ज्ञानिनां पश्च ज्ञानानि भजनया भवन्ति ये तु अज्ञानिनस्तेषां त्रीणि अज्ञानानि भजनयैव भवन्ति, दाणलब्धियाण पंचनाणाई, तिन्नि अन्नाणाई भयणाए' दानान्तरायकर्मक्षयक्षयोपशमाद् दाने दातव्ये वस्तुनि सुयनाणी य' दो ज्ञानवाले जीवोंमें मतिज्ञान, श्रुतज्ञान ये दो ज्ञान होते हैं तथा 'जे तिनाणी ते आभिणिबोहियनाणी, सुयनाणी, ओहिनाणी य' तीन ज्ञानवालोंमें मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान ये तीन ज्ञान होते हैं । 'तस्स अलद्धियाणं पंचनाणाई तिनि अन्नाणाई भयणाए' तथा जो जीव चारित्राचारित्र लब्धिवाले नहीं होते हैं- वे ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी भी होते हैं. जो ज्ञानी होते हैं वे भजनासे पांच ज्ञानवाले होते हैं- क्यों कि ये श्रावक के चारित्र से भिन्न चारित्रवाले हैं। तथा जो यहां अज्ञानी होते हैं इनमें भी तीन अज्ञान भजनासे होते हैं अर्थात् दो अज्ञान तो होंगे ही-पर तीसरा अज्ञान-विभंगज्ञान हो भी सकता है- और नहीं भी हो सकता है। 'दाणलद्विया णं पंचनाणाइं, तिनि अन्नाणाई भयणाए' दानान्तराय कर्मके क्षयोपशमसे दान-दातव्य वस्तुमें जिनकी लब्धि होती है वे दानलब्धिवाले जीव हैं । ऐसे जीव ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी में शानदार वामा भतिज्ञान भने श्रुतज्ञान में ज्ञान डाय छे. त 'जे तिन्नाणी ते आभिणिबोहियनाणी, सुयनाणी ओहियनाणी य' त्र ज्ञानवानामा भतिज्ञान, श्रुतज्ञान तथा अवधिज्ञान से य ज्ञान डाय छे. 'तस्स अलद्धियाणं पंचनाणाई तिन्नि अन्नाणाई भयणाए' ने ७१ यारिया यायिय हित डाय छे ते ज्ञानी પણ હોય છે અને અજ્ઞાની પણ હોય છે તેઓ ભજનાથી પાંચ જ્ઞાનવાળા હોય છે કેમકે તેઓ શ્રાવકના ચારિત્ર્યથી જુદા પ્રકારના ચારિત્ર્યવાળા હોય છે તથા જેમને અહીં અજ્ઞાની ગણવાના છે તેમનામાં પણ ત્રણ અજ્ઞાન ભજનાથી હોય છે. અર્થાત તેમનામાં બે અજ્ઞાન તે હોય છે પરંતુ ત્રીજું વિભંગ અજ્ઞાન-વિર્ભાગજ્ઞાન પણ હોઈ શકે છે અને હેતું પણ नथी. 'दाणलद्धियाणं पंचनाणाई, तिन्नि अन्नाणाई भयणाए' हानान्तराय भना ક્ષયપામથી દાન-દાતવ્ય વસ્તુમાં જેની લબ્ધિ થાય છે તે દાનલબ્ધિ છવ છે. તેવા જીવ श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy