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________________ प्रमेगचन्द्रिका टीका श.८ उ.२ मू.९ लब्धिस्वरूपनिरूपणम् ४४७ सामायिकचारित्रालब्धिमतां मध्ये ये ज्ञानिनस्तेषां छेदोपस्थापनीयादि संभवेन सिद्धभावेन वा पञ्च ज्ञानानि भजनया, ये तु अज्ञानिनस्तेषां त्रीणि अज्ञानानि च भजनयै व, ‘एवं जहा सामाइयचारित्तलद्धिया अलद्धिया य भणिया, एवं जाव अहक्खायचरित्तलद्धिया अलद्धिया य भाणियवा' एवं रीत्या यथा सामायिकचारित्रलब्धिकाः अलब्धिकाश्च भणिताः, एवं यावत्-छेदोपस्थापनीयचारित्रलब्धिकाः अलब्धिका', परिहारविशुद्धिकचारित्रलब्धिकाः अलब्धिकाश्च यथाख्यात चारित्रलब्धिका अलब्धिकाश्च भणितव्याः तत्र क्रमशः प्रथमे शानि कि सामायिकचारित्रकी अलब्धिवालोंमें छेदोपस्थापनीयादि चारित्रवाले भी आते हैं और सिद्ध भी आते हैं । सो ये सब अज्ञानी न होकर ज्ञानी ही होते हैं। क्यों कि इन सबमें सम्यग्दर्शन होता है । अतः जब सामायिकचारित्रकी अलब्धिवाले जीवोंके बीच में उन्हें लिया जाता है तब इनमें पांच ज्ञान तक हो सकते हैं। और जब सामायिकचारित्रकी अलब्धिवालोंमें मिथ्यादृष्टि लिये जाते है- तब वे अज्ञानी होनेके कारण उनके तीन अज्ञानतक हो सकते हैं। 'एवं जहा सामाइयचरित्तलद्धिया, अलद्धिया य भणिया, एवं जाव अहक्खाय चरित्तलद्धिया अलद्धिया य भाणियव्वा' जिस तरह से सामायिक चारित्रलब्धिवाले और इसकी अलब्धिवाले जीवोंके विषयमें कहा गया है, उसी प्रकारसे यावत्- छेदोपस्थापनीयचारित्रकी लब्धिवाले एवं इसकी अलब्धिवाले, परिहार विशुद्धिकचारित्रकी लब्धिवाले एवं इसकी अलब्धिवाले, तथा यथाख्यात चारित्र की लब्धिवाले एवं इसकी સામયિક ચાયિની અલબ્ધિવાળાઓમાં છેદેપસ્થા પનિયાદિક ચારિત્ર્યવાળાઓને સમાવેશ થઈ જાય છે અને સિદ્ધોનો પણ સમાવેશ થાય છે તેથી તેઓ જ્ઞાની જ હોય છે ४२५ मनामा सभ्यन डाय छे. अतः न्यारे सामायि: यारियनी सम्धिवाणा છમાં તેઓને ગ્રહણ કરવામાં આવે ત્યારે તેમાં પાંચ જ્ઞાન પર્યત હેય શકે છે. અને જ્યારે સામાયિક ચારિત્ર્યની અલબ્ધિવાળાઓમાં મિથ્યાદ્રષ્ટિ લેવામાં આવે છે ત્યારે ते। अज्ञानी डावाना आरणे तमामात्र महान पर्यत हा श छ. "एवं जहा सामाइयचरित्तलद्धिया अलद्धियाय भणिया एवं जाव अहरुखाय चरित्तलद्धिया अलद्धियाय भाणियव्या' नेश सामायि: यारियाणा भने ती माय વાળા જીના વિષયમાં કહેવામાં આવ્યું છે તે જ રીતે-વાવતુ- છેદેપસ્થાપનીય ચારિત્ર્યની લબ્ધિવાળા અને તેની અલબ્ધિવાળા, પરિહાર વિશુદ્ધિક ચારિત્ર્યની લબ્ધિવાળા અને તેની અલબ્ધિવાળા તથા યથાખ્યાત ચારિત્ર્યની લબ્ધિવાળા અને તેની અલબ્ધિવાળા श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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