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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ. २ सू. ८ लब्धिस्वरूपनिरूपणम् ४३३ अन्यतमावश्यंभावात् ' सम्मदंसणलद्धियाणं पंच पश्च 6 मिथ्या मिश्रश्रद्धानेषु नाणाई भयणाए सम्यग्दर्शनलब्धिकानां सम्यग्दृष्टीनां ज्ञानानि भजनया भवन्ति, तस्स अलद्धियाणं तिनि अन्नाणाई भयणाए' तस्य सम्यग्दर्शनस्य अलब्धिकानां मिथ्यादृष्टीनां मिश्रदृष्टीनाञ्च त्रीणि अज्ञानानि भजनया भवन्ति, मिश्रस्य तात्विकसद्बोधजनकत्वाभावेन मिश्रदृष्टीनामपि अज्ञानमेवेति भावः । गौतमः पृच्छति - 'मिच्छादंसणलद्धियाणं भंते ! पुच्छा ?' हे भदन्त ! मिथ्यादर्शनलब्धिकाः खलु जोवाः किं ज्ञानिनः किंवा अज्ञानिनो भवन्ति ? इति पृच्छा प्रश्नः, भगवानाह - 'तिन्नि अन्नाणाई - , 6 के कोई न कोई रुचि अवश्य होती हैं । अतः यहां ऐसा कहा गया है कि सामान्य रुचि रहित कोई भी जीव नहीं होता है । सम्मदंसणलद्रियाणं पंच नाणाई भयणाए' जो जीव सम्यग्दर्शनलब्धिवाले होते हैं अर्थात् सम्यग्दृष्टि होते हैं उनको पांच ज्ञान भजनासे होते हैं । भजनसे किस प्रकार से होते हैं यह बात ऊपर प्रकट की जा चुकी है । तस्स अलद्वियाणं तिन्नि अन्नाणाई' जो सम्यग्दर्शनरूप लब्धि से रहित होते हैं अर्थात् सम्यग्दृष्टि नहीं होते मिध्यादृष्टि होते हैं उनको तीन अज्ञान भजनासे होते हैं । इसी तरहसे मिश्रदृष्टियों को भी तीन अज्ञान भजनासे होते हैं । क्योंकि जो मिश्र दृष्टि जीव होते हैं उनमें तात्विकबोध नहीं होता है अतः उनकी मिश्रदृष्टि तात्विक बोधकी जनकता के अभाव से अज्ञानरूप ही होती है। अब गौतम प्रभुसे पूछते हैं 'मिच्छादंसणलद्विया णं भंते! पुच्छा' हे भदन्त ! मिथ्यादर्शनलब्धिवाले जीव क्या ज्ञानी होते हैं ? या अज्ञानी होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते 'तिन्नि अन्नाणाई भयणाए' हे गौतम ! मिथ्यादर्शनलब्धिवाले जीवों में • , 6 એટલે જ અહીં એવું કહેવામાં આવે છે કે સામાન્ય રુચિ રહિત કેઇપણ જીવ હાતા નથી. 'सम्मदंसणलद्धियाणं, पंचनाणाई भयणाए જે જીવ સમ્યગ્દ`િનવાળા હાય છે તેને પાંચ જ્ઞાન ભજનાથી હાય છે. ભજનાથી કેવી રીતે હેાય છે. તે ઉપર પ્રટ કરવામાં આવી છે. तस्स अलद्धियाणं तिन्नि अन्नाणाई ' ने सम्यगृध्र्शनइय सम्धिथी રહિત હૈાય છે. એટલે કે મિથ્યાષ્ટિરૂપ હાય છે તેને ત્રણ અજ્ઞાન ભજનાથી હાય છે. એવીજ રીતે મિશ્રષ્ટિવાળા જીવમાં પણ ત્રણ અજ્ઞાન ભજનાથી હાય છે. કેમકે જે મિશ્રસૃષ્ટિ જીવ હાય છે. તેમાં તાત્વિક માધ હાતા નથી. प्रश्न : - ' मिच्छादंसणलद्धियाणं भंते पुच्छा' हे भगवान् ! मिथ्यादर्शन सम्धिवाणा वा ज्ञाना होय हे अज्ञानी होय छे ? उत्तर :- तिभि अन्नाणा भरणाए ' हे गौतम! मिथ्यादर्शन सब्धिवाना શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૬
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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