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________________ प्रमेयचन्द्रिका टोका श.८ उ.२ सू. ७ लब्धिस्वरूपनिरूपणम् ४१९ बोधिकज्ञानस्य अलब्धिकाः लब्धिरहिताः खलु जीवाः किं ज्ञानिनो भवन्ति, अज्ञानिनो वा ? भगवानाह- 'गोयमा ! नाणी वि, अन्नाणी वि' हे गौतम ! मतिज्ञानलब्धिरहिता जीवाः ज्ञानिनोऽपि भवन्ति, अज्ञानिनोऽपि, तत्र 'जे नाणी ते नियमा एगनाणी केबलनाणी, जे अन्नाणी ते अत्थेगइया दुअन्नाणी, तिन्नि अन्नाणाई भयणाए' मतिज्ञानलब्धिरहिता ये ज्ञानिनो भवन्ति ते नियमात् एकज्ञानिनः केवलज्ञानिनो बोध्याः, ये तु अज्ञानिनस्ते सन्ति एकके द्व यज्ञानिनः, तेषां त्रीणि अज्ञानानि भजनया, केचन व्यज्ञानिनः इत्यर्थः, 'एवं सुयनाणलद्धोया वि' एवम् आभिनिबोधिकज्ञानलब्धिकवदेव श्रुतज्ञानलब्धिका 'तस्सअलब्धियाणं भंते ! जीवा किंनाणी अन्नाणी' हे भदन्त ! जो जीव आभिनिबोधिकज्ञानलब्धि से रहित होते हैं वे क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं। 'नाणी वि, अन्नाणी वि' हे गौतम ! आभिनिबोधिक ज्ञानलब्धि से रहित जीव ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी भी होते हैं। इनमें 'जे नाणी ते नियमा एगनाणी केवलनाणी, जे अन्नाणी ते अत्थेगड्या दुअन्नाणी, तिन्नि अण्णाणाई भयणाए' जो ज्ञानी होते हैं वे नियम से एक केवलज्ञानसे ज्ञानी होते हैं और जो अज्ञानी होते हैं. उनमें कितनेक दो अज्ञानवाले होते हैं तथा इनमें जो तीन अज्ञानी होते हैं। वे भजना से होते हैं। अर्थात् कोई २ इनमें तीन अज्ञानवाले भी होते हैं । ' एवं सुयनाणलद्धि या वि' आभिनिवोधिक ज्ञानलब्धिबालों की तरह ही श्रुतज्ञान लब्धिवालोंको भी ज्ञानी ही जानना હે ભગવાન જે જીવ અભિનીપિક જ્ઞાનલબ્ધિથી રહિત હોય છે. તેઓ શું જ્ઞાની હોય છે मज्ञानी हाय छ ? 8. :- 'नाणी वि अन्नाणी वि' गौतम! मालिनीमाधि જ્ઞાન લધિક વગરના જીવો જ્ઞાની પણ હોય છે અને અજ્ઞાની પણ હોય છે. તેમનામાં 'जे नाणी ते नियमा एगनाणी केवलनाणी जे अन्नाणी ते अत्थेगइया दुअन्नाणी तिन्नि अन्नणाई भयणाए'7 शानी हाय छे ते नियभया मे જ્ઞાનવાળા હોય છે અને જે અજ્ઞાની હોય છે. તેમાં કેટલાક બે અજ્ઞાનવાળા અને ત્રણ અજ્ઞાનવાળા ભાજનાથી હોય છે. અર્થાત કઈ કઈ ત્રણ અજ્ઞાનવાળા પણ હોય છે. 'एवं मुयनाणलद्धियावि' मालिनिवाधि४ शानeleuanानी भा३४ ॥ श्रुतमानसવાળાઓને પણ જ્ઞાન જ સમજવા, અજ્ઞાની નહીં, જ્ઞાનીમાં પણ કેઈ બે જ્ઞાનવાળા અને श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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