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________________ ४१८ भगवतीसूत्रे भवन्ति, त्रीणि अज्ञानानि भजनया, तथाच केचन व्यज्ञानिनोऽपि । गौतमः पृच्छति- 'आभिणिवोहियणाणलद्धिया णं भंते ! जीवा कि नाणी, अनाणी?' हे भदन्त ! आभिनिबोधिकज्ञानलब्धिकाः मतिज्ञानलब्धिमन्तः खलु जीवाः किं ज्ञानिनः ? किंवा अज्ञानिनो भवन्ति ? भगवानाह- 'गोयमा नाणी, नो अण्णाणी, अत्थेगइया दुन्नाणी तिनाणी चत्तारि नाणाई भयणाए' हे गौतम ! आभिनिबोधिकज्ञानलब्धिमन्तो जीवा ज्ञानिनो भवन्ति, नो अज्ञानिनः, तत्र सन्ति एकके मतिज्ञानलब्धिमन्तो ज्ञानिनः द्विज्ञानिनः, तेषां मतिज्ञानलब्धिकानाम् चत्वारि ज्ञानानि भजनया भवन्ति, केचन त्रिज्ञानिनः, केचन चतुर्जानिनोऽपि केवलिनस्तु नास्ति आभिनिबोधिकज्ञानमिति भावः । गौतमः पृच्छति - 'तस्स अलद्धिया णं भंते ! जीवा कि नाणी, अन्नोणी ?' हे भदन्त ! तस्य आभिनितीन अज्ञानवाले भी होते हैं इस तरह तीन अज्ञानवाले होने की भजना है। अब गौतम प्रभुसे पूछते हैं- 'आभिणिबोहियणाणलद्धियाणं भंते ! जीवा किं नाणी अन्नाणी' हे भदन्त ! आभिनिबोधिकज्ञानलब्धिवाले जीव क्या ज्ञानी होते है या अज्ञानी होते हैं ? आभिनिबोधिकज्ञानलब्धिसे तात्पर्य यहां मतिज्ञानलब्धिसे है। इसके उत्तरमें प्रभु कहेते हैं 'गोयमा' हे गौतम ! 'नाणी नो अण्णाणी' आभिनिबोधिक ज्ञानलब्धिवाले-मतिज्ञानलब्धिवाले जीव ज्ञानी होतेहैं, अज्ञानी नहीं होते हैं। इनमें 'अत्थेगइया दुन्नाणी, तिन्नाणी चत्तारि नाणाई भयणाए' कितनेक जीव दो ज्ञानवाले होते हैं, कितनेक जीव तीन ज्ञानवाले होते हैं और कितनेक जीव चार ज्ञानवाले भी होते हैं- अर्थात् चार ज्ञानवाले जो मतिज्ञानलब्धिवाले जीवोंमें होते हैं वे भजनासे होते हैं अर्थात् होते भी हैं ओर नहीं भी होते हैं। इनमें केवली नहीं होते हैं। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं. 'आभिणिबोहियनाणलद्धियाणं भंते जीवा किं नागी अन्नाणी ' मन्त! मालिनिमाथि ज्ञान स्विप ७॥ ज्ञानी होय छे अज्ञानी ? :- ' गोयमा' गौतम ! 'नाणी नो अन्नाणी' मालिनीमाथि ज्ञान alia-मतिan elain ७३ ज्ञानी डायछ अज्ञानी होता नथी. तेमा 'अत्थेगइया दुन्नाणी तिन्नाणी चत्तारिनाणाई भयणाए' मा ७१ शानवामने 2194 जान मन 21 04 ચાર જ્ઞાનવાળા હોય છે. અર્થાત ચાર જ્ઞાનવાળા જે મતિજ્ઞાન લબ્ધિવાળા જીવમાં હોય છે તે ભજનાથી હોય છે. એટલે કે હોય છે પણ ખરા અને હતા પણ નથી. તેમનામાં કેવળી होता नथी. प्रश्न:- 'तस्स अलद्धियाणं भंते जीवा किं नाणी अन्नाणी' श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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