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भगवतीसूत्रे स्त्रिज्ञानिनः, भजनया यज्ञानिनस्यज्ञानिनश्च वक्तव्याः, गौतमः पृच्छति-'तिरियभवत्था णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी ? हे भदन्त ! तिर्यग्भवस्थाः प्राप्ततिर्यग्भवोत्पत्तिकाः खलु जीवाः किं ज्ञानिनो भवन्ति, अज्ञानिनो वा भवन्ति ? भगवानाह-'तिन्नि नाणा, तिन्नि अन्नाणा भयणाए' हे गौतम ! तिर्यग्भवस्थानां जीवानां त्रीणि ज्ञानानि, त्रीणि अज्ञानानि च भजनया भवन्ति । गौतमः पृच्छति'मणुस्सभवत्था णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी?' हे भदन्त ! मनुष्यभवस्थाः खलु जीवाः किं ज्ञानिनो भवन्ति अज्ञानिनो वा भवन्ति? भगवानाह 'जहा सकाइया' हे गौतम ! यथा सकायिकाः भजनया पञ्चज्ञानिना,व्यज्ञानिनश्चोक्तास्तथैत्र जीव नियमसे त्रिज्ञानी और भजनासे दोअज्ञानी एवं तीनज्ञाना होते हैं एसा जानना चाहिये । अब गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं 'तिरियभवत्था णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी' हे भदन्त ! जो जीव तिर्यग्भवस्थ होते हैं अर्थात् जिन जीवोंने तिर्यग्भवमें उत्पत्ति प्राप्त करली है वे क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? इसके उत्तरमें प्रभु कहते हैं 'तिनि नाणा तिन्नि अन्नाणा भयणाए' हे गौतम ! जो तिर्यग्भवस्थ जीव सम्यग्दृष्टि होते हैं उनको भजनासे तीन ज्ञान और जो मिथ्यादृष्टि होते हैं उनको भजनासे तीन अज्ञान होते हैं। अब गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं 'मणुस्स भवत्थाणं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी' हे भदन्त ! जो जीव मनुष्य भवमें वर्तमान होते हैं अर्थात् मनुष्यभवमें आकर उत्पन्न होते हैं, वे क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? इसके उत्तरमें प्रभु कहते हैं 'जहा सकाइया' हे गौतम ! जैसे सकायिक जीव भजनासे पंचज्ञानी और तीनअज्ञानी होते हैं उसी तरहसे मनुष्यभवस्थ जीव भवत्थाणं भंते जीवा किं नाणी अन्नाणी' वान! नेतिय सस्थ હોય છે. અર્થાત જેએ તિર્થક ભવમાં ઉત્પત્તિ કરેલી છે તેવા છે જ્ઞાની હોય છે કે
जानी हाय छ ? उत्तर :- 'तिन्नि नाणा तिन्नि अन्नाणा भयणाए' गौतम! જે તિર્થક ભવસ્થ જીવ સમ્યગ દષ્ટિવાળા હોય છે. તેઓને ભજનાથી ત્રાણુ જ્ઞાન અને જે મિથ્થા દષ્ટ હોય છે તેઓને ભજનાથી ત્રણ અજ્ઞાન હેય છે. હવે ગૌતમ સ્વામી प्रभुने मे पूछे थे 'मणुम्सभवत्थाणं भंते जीवा किं नाणी अन्नाणी' હે ભગવાન ! જે જીવ મનુષ્ય ભવમાં રહેલા હોય છે. તે શું જ્ઞાની હોય છે કે અજ્ઞાની? उत्तर :- 'जहा सकाइया' गौतमवीरीते साथि: 04 नाथी पांय
श्री. भगवती सूत्र :